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कहा हमारी गाड़ी के तिल ले लो। लोगों ने कहा अरे तू बड़ा बेवकूफ है । जो घी बोला जाता है । वह दिया नहीं जाता है। जितने मन घी बोला जाता है, उसके आधे रुपये दिये जाते हैं। यदि किसी ने 4 मन घी बोला तो दो रुपये दे दिये। उस देहाती ने कहा- यह तो नहीं होगा। हमने एक गाड़ी तिल बोल दिये तो ये तुम्हें लेने ही पड़ेंगे । ले लिये और पंचों ने बाजार में बेचकर रुपया कर
लिये ।
अब उस देहाती ने सोचा कि ये लोग मंदिर में रोज झूठ बोलते हैं । इनकी अक्ल ठिकाने लगाना चाहिये । उसने सब से कह दिया कि भाइयो कल 12 बजे दिन का हमारे यहाँ आप सबका निमंत्रण है । चूल्हे का निमंत्रण है । अगर कोई अतिथि आ जाये तो उसका भी निमंत्रण है । सो अब उसने एक मैदान में चारों तरफ कनात लगा दी और यहाँ-वहाँ बहुत सी गीली लकड़ियाँ जला दीं। खूब धुँआ होने लगा। सब गाँव वाले सोचते हैं कि खूब पूड़ियाँ बन रही हैं । उनको विश्वास हो गया। तो ठीक 11 बजे ही सब पहुँच गये । पत्तल भी परोस दी। पत्तल परोसने के बाद और कुछ तो परोसा नहीं और कहा आप लोग भोजन करिये। लोग बोले-अरे ! क्या भोजन करें ? अभी तो कुछ परोसा ही नहीं । उसने कहा - ' जैसी आप लोगों की आरती की बोली है, वैसा ही यह निमंत्रण समझ लो ।' सोचा यह दंड ठीक है ।
बताओ सिर्फ गप्पें करने से क्या मिलेगा ? यहाँ-वहाँ का आरम्भ बढ़ाने से कौन - सा तत्त्व मिलेगा ? अथवा मन संयत न कर लेने से इस आत्मा को क्या फायदा होगा? यह तो अब भी अकेला है, आगे भी अकेला रहेगा, इसके तो जैसे भाव होंगे उसके अनुकूल सुख - दुःख मिलंगे | झूठ बोलने से क्या प्रयोजन, अगर 1 रुपया देना है तो बोल दिया 2 मन घी और अगर 2 रुपया देना है तो बोल दिया चार मन
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