Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 718
________________ नहीं जान सकते | भगवान की भक्ति के बिना मोक्षमार्ग संभव नहीं है। मोक्ष की तरफ यदि जाना है, तो पहले भगवान की भक्ति अनिवार्य है। अपना यह जीवात्मा कर्मों की मार अनादिकाल से सहन करता आ रहा है । अत्यन्त दुर्लभता से प्राप्त इस मनुष्य पर्याय में अपने-आपको पहचान ला कि मैं कौन हूँ? धर्म का मार्ग ही सारी दुनिया में एक सत्य का मार्ग है | अतः इस पर चलन का पुरुषार्थ करो। आत्मोन्नति में अग्रसर होने के लिये अरहंत भगवान ही हमारे आदर्श हैं। "यागसार" ग्रंथ में आचार्य योगीन्दु देव ने लिखा है जिण सुमिरहु जिण चिंतह, जिण झायहु सुमणे ण । सो झायंतहँ परम पउ, लब्भई एक्क-खणण || शुद्ध मन से भगवान का स्मरण करो और जिनेन्द्र भगवान का ध्यान करो । उनका ध्यान करने से, एक क्षण भर में परमपद प्राप्त हो जाता है। धर्म ता अन्तरात्मा की अनुभूति का विषय है। यह अनुभूति कब होगी? जब राग-द्वेष छोड़ेंगे, तब ही 'आत्मधर्म' यानी वास्तविक धर्म प्रकट होगा। राग-द्वेष का त्याग किये बिना परमात्मपद नहीं मिल सकता। यह आत्मा अनन्तशक्ति का धारक होकर भी अपनी शक्ति को भूल रहा है। अपनी शक्ति को भूलने के कारण ही यह संसार में भटक रहा है। अपनी शक्ति को न पहचानकर कर्मजनित दुःखों को सह रहा है | अगर यह अपनी शक्ति को पहचान कर रत्नत्रय धर्म का पालन करे, तो सर्व कर्मों के बंधन तोड़कर स्वतंत्र एवं सुखी हो जावे। जो भगवान के स्वरूप को समझ जायगा, वह अपनी आत्मा के स्वरूप को समझ जायेगा। और जो आत्मा के स्वरूप को समझ (703)

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