Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 759
________________ सकते | अमृत व जहर का विरोध है, जैसे कि कहा गया है – ज्ञान कला जिनक घट जागी, ते जग माहिं सहज बैरागी। ज्ञानी मगन विषै-सुख माँही, यह विपरीति संभवै नाँही ।। जिनके चित्त में सम्यग्ज्ञान की किरण प्रकाशित हुई है, वे संसार में स्वभाव से ही वीतरागी रहते हैं। ज्ञानी हो कर विषय-सुख में आसक्त हां, यह उल्टी रीति असम्भव है। अगर कोई कहे कि ज्ञानी विषय-भोगों में मग्न रहे, ता ऐसा नहीं हो सकता। ज्ञानी को भोग बुरे दिखने लगते हैं। इन सब बातों को जानकर सच्चा ज्ञान प्राप्त करो, मगर बिना ज्ञान के काँच को हीरा, पीतल का साना और भोगों को सच्चा सुख ही मानने लगे, ता यह सब तुम्हारा मिथ्याज्ञान ही है | एक नगर में एक जौहरी रहता था। उसका पुत्र अज्ञानी था एक दिन अचानक जौहरीजी की मृत्यु हो जाती है। लड़के का काम-धन्धा तो आता नहीं था, उसने तिजोरी खोलकर हीरे निकाले और अपने चाचा, जो की जौहरी थे, के पास ले गया और बोला-चाचाजी! मेरे ये हीरे बिकवा दीजिए। चाचा ने कहा-बेटे! अभी बाजार में ग्राहक नहीं हैं, इनका सही मूल्य नहीं मिल पावेगा, इन्हें वापस तिजोरी में रख दो और मेरे पास दुकान पर बैठा करो, जिस दिन बाजार में ग्राहक होंगे, माल सही दामों पर बिक जावेगा। लड़का रोजाना दकान पर बैठने लगा। धीरे-धीरे उसको रत्नों की परख आने लगी। जब चाचा ने देखा कि अब इसको परख करनी अच्छी तरह आ गई है तब कहा कि आज बाजार में ग्राहक हैं जाओ उन हीरों को ले आओ। वह घर आया और तिजारी में से हीरे निकाले और वापस रख दिये और सोचा कि मैं भी कितना मूर्ख हूँ, काँच को हीरा समझ बैठा और खाली हाथ आ गया। तब चाचा ने पूछा-क्या हुआ? हीरा नहीं लाये? लड़के ने कहा-चाचाजी! मैं गलती पर था, वे ता काँच (744

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