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एक अंग्रेज ने अपनी जीवन गाथा में लिखा है। एक बार वह दान पर प्रवचन सुन रहा था । कोई पादरी जी दान पर बड़ा अच्छा प्रवचन कर रहे थे | उस प्रवचन को सुनकर उसके भाव हो गये कि जब ये लोग झोली लेकर दान लेन आयेंगे तो मैं झोली में 100 डालर डाल दूंगा।
थोड़ी देर बाद वह सोचता है 100 डालर तो बहुत हाते हैं, 50 डालर तो डाल ही दंगा। अब प्रवचन सनना बन्द हो गया और वह विचारों में खा गया, जबकि अभी भी प्रवचन चल रहा है, पर अब उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा। वह फिर सोचता है 50 डालर भी बहुत होते हैं, 25 डालर तो अवश्य ही डाल दूंगा। इस प्रकार वह कम करता गया और थोड़ी देर बाद तो वह प्रवचन में से उठकर बाहर आ गया, क्योंकि अन्त में उसक भाव हो गये थे कि मैं डालूँगा तो आधा डालर और उठा लूँगा एक डालर |
इसीलिये कहा है-"शुभस्य शीघं” शुभ कार्य का विचार आये तो तुरन्त कर लेना चाहिय | जब भी संयम, तप, त्याग के भाव हों उसे उसी समय धारण कर लेना चाहिये उसमें विलम्ब नहीं करना चाहिये।
जीवन्धर कुमार के पिता राजा सत्यंधर जीवन्धर क जन्म से पहले विलासिता में इतने डूबे रहते थे कि राज्य का काम-काज कैसा चल रहा है, ध्यान ही नहीं रख पाते थ| मंत्री ने सोचा अच्छा अवसर है | उसने भीतर-ही-भीतर राज्य हड़पने की याजना बना ली और किसी को कुछ पता ही नहीं चला | जब मालूम पड़ा तो राजा सत्यंधर की पत्नी गर्भवती थी। वंश का संरक्षण करना आवश्यक है, इसलिये पहले पत्नी को विमान में बैठाकर दूर भेज दिया और स्वयं
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