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की महारानी विक्टोरिया । अलबर्ट प्रिंस ने द्वार नहीं खोला। विक्टोरिया सोचती है कि अभी उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ। वह पुनः द्वार खट-खटाती है, भीतर स वही आवाज, कौन? मैं महारानी विक्टोरिया, पुनः द्वार नहीं खुलता। अर्द्ध रात्रि बीत चुकी, फिर द्वार खटखटाती है। वही आवाज कौन? मैं विक्टोरिया, फिर भी द्वार नहीं खुलता । विक्टोरिया सोचती है कारण क्या है, इतने नाराज तो कभी नहीं हुये, आज द्वार ही नहीं खोल रहे । पुनः साहस जुटाती है और द्वार खटखटाती है, भीतर से वही आवाज कौन? विक्टोरिया कहती है "आपकी पत्नी विक्टोरिया । जैसे ही समर्पण भरे शब्दों का प्रिंस सुनते हैं तुरन्त द्वार खाल देते हैं | जब ''मैं' की दीवार टूट जाती है, तब परमात्मा का द्वार अपने-आप खुल जाता है | जब-जब विक्टोरिया अहंकार को लेकर पहुँची, तब-तब उसे द्वार बन्द मिल | हम भी जब परमात्मा के द्वार पर अहंकार को लेकर जाते हैं, तो हमें द्वार बन्द मिलते हैं। साधना करने के उपरान्त भी परमात्मा के दर्शन नहीं मिलते । अहंकार का विसर्जन करने के बाद ही परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं। हमें परमात्मा के दर्शन हों इसके लिए हमें विक्टारिया के समान अपने “मैं” को मिटाना हागा।
अहंकार का हमारी आत्मा पर इतना अधिक बोझ है कि वह हमें परमात्मा से मिलने नहीं देता। व्यक्ति का तौल तो संभव है, मगर उसका अहंकार बेतौल है| अहंकार के बोझ के कारण व्यक्ति दबा जा रहा है, मरा जा रहा है। दुनिया में आज तक ऐसी कोई मशीन नहीं बनी जो व्यक्ति के अहंकार को तौल सके | झूठी शान और प्रदर्शन की भावना व्यक्ति को बहुत दुःख देती है।
एक मेंढक था। एक बार उसने हाथी को रौब और मदमस्त चाल से चलता हुआ देखा तो उसके दिमाग में एक धुन सवार हो गई कि
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