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सारे पैसे वापस लेकर आना । ध्यान रखना, देरी नहीं होनी चाहिये । और नौकर रात में जाकर झाड़ियों में छुपकर बैठ गया । इसी रास्ते से व्यापारी के लिये निकलना था । व्यापारी सुबह उठा, भगवान का नाम लिया, पैसों का थैला उठाया और आगे बढ़ गया। पता नहीं व्यापारी के मन में आज सुबह कुछ अलग भाव ही आया । व्यापारी जब भी गाँव जाता था, उस एक ही रास्ते से जाया करता था । पर आज जैसे ही वह हवेली के बाहर निकला, उसे अन्तः प्रेरणा-सी हुई । उसे ऐसा लगा कि कोई अदृश्य शक्ति उसके साथ काम कर रही है और वही उसकी रक्षा कर रही थी । व्यापारी मन में भाव आया कि बहुत दिन हो गये इसी रास्ते से आते-जाते, चलो आज रास्ता बदल कर चलते हैं । और वह व्यापारी उस रास्ते को बदलकर दूसरे रास्ते से आगे बढ़ गया ।
नौकर निशाना साधे हुये बैठा था, प्रतीक्षा कर रहा था, पर अभी तक कोई निकला ही नहीं । यहाँ ठाकुर साहब के लिये बैचेनी बढ़ रही थी कि अभी तक नौकर नहीं आया, आखिर बात क्या है ? ठाकुर साहब का इकलौता जवान बेटा था। ठाकुर साहब ने उस बेटे से कहा कि जरा देख, नौकर अभी तक नहीं आया, आ रहा कि नहीं, क्या देरी है? जरा पता लगाओ। और वह बेटा सुबह-सुबह झुरमुटे में नौकर को देखने के लिये गया । पहचान में कोई भी नहीं आ रहा था । और जैसे ही उसके आने की पगचाप सुनाई दी, नौकर सावधान हो गया । और जैसे ही बटा आगे बढ़ा कि उस नौकर ने समझा कि व्यापारी को आज आने में देरी हो गई है, कोई बात नहीं, उसने आव देखा न ताव और बन्दूक का घोड़ा चटका दिया । उठकर देखा तो बटा धराशायी हो गया था । और व्यापारी सही सलामत अपने घर पहुँच गया । ठाकुर साहब को जब मालूम हुआ तो छाती पीटकर रोने
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