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हुई तो वह छोटा-सा घाव नासूर बन जायेगा ।
अग्नि थोवं, जरा-सी तो चिनगारी है, यह क्या करेगी? यदि ऐसा सोचकर आपने उसे पनपने का जरा भी अवसर दिया तो फिर देखो वही चिनगारी लपट और ज्वाला बनेगी, जो सबकुछ खाक करने की क्षमता रखती है। इसी तरह कषाय की परिणति भी है । यदि हमने उसे वश में नहीं किया, काबू में नहीं रखा तो निश्चित मानिये कि वह हमारे जीवन को तहस-नहस कर देगी ।
जैसे कि घाव, ऋण, अग्नि ये तीनों चीजें बहुत थोड़ी मालूम पड़ती हैं, लेकिन इनके असर बहुत अधिक होते हैं। ठीक इसी तरह कषायें बहुत थोड़ी दिखाई पड़ती हैं, पर उनके असर बहुत अधिक दिखाई पड़ते हैं । कषायों की तासीर को यदि कोई जान ले तो फिर वह कषाय क्यों करेगा? आग की तासीर मालूम पड़ गई तो कौन आग में हाथ डालता है? हमें इन कषायों की तासीर को पहिचान लेना है । ये कषायें हमें बार-बार धोखा देती हैं। ये आ जाती हैं और कहती हैं - थोड़ा-सा ही तो है, अभी ठीक हो जायेगा; लेकिन नहीं, बढ़ती चली जाती हैं । जैसे जरा-सी सुई होती है, डाक्टर बच्चे को समझाता है कि इतनी-सी तो सुई है । पर उतनी-सी सुई से ही वह डाक्टर पुरी दवाई अन्दर कर देता है ।
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जैसे बट का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, लेकिन उसका बीज कितना छोटा, खसखस के दाने के बराबर होता है । ठीक ऐसे ही इन कषायों का स्वभाव है । होती हैं ये खसखस के दाने के समान, लेकिन इनको भीतर प्रवेश मिलता चला जाये तो ये बढ़कर वटवृक्ष के समान फैलकर हमारे पूरे जीवन को आच्छादित कर देती हैं और हम इनकी पकड़ में आ जाते हैं । हमारी जरा सी देर की कमजोरी हमें मजबूर बना देती है
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