Book Title: Rajasthani Jain Sahitya Author(s): Manmohanswarup Mathur Publisher: Rajasthani Granthagar View full book textPage 6
________________ पुरोवाक् पुरोवाक् - राजस्थान साहित्य और संस्कृति से सम्पन्न भारत का प्रमुख राज्य है। इस प्रदेश के शासकों ने समय-समय पर विविध धर्मों-सम्प्रदायों को संरक्षण एवं प्रश्रय देकर इनका सम्मान किया। इसी भावना के परिणाम स्वरूप यहाँ अन्य धर्मों की भाँति जैन धर्म को भी पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हुआ । प्रमाणों के आधार पर राजस्थान में जैन धर्म का प्रचार दूसरी शताब्दी से ही आरंभ हो गया था । जैन धर्म के प्रचार-प्रसार ने यहाँ की साहित्य-सम्पदा की और श्रीवृद्धि की। जैनधर्म से सम्बन्धित विभिन्न शाखा-प्रशाखाओं के यतियों, मुनियों, आचार्यों ने अपने सम्प्रदाय से सम्बन्धित साहित्य का सृजन विविध साहित्यिक विधाओं में लिखा, जो यहां के विभिन्न ग्रंथालयों में संग्रहीत-संरक्षित है । इस साहित्य की भाषा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी अथवा मरू-गर्जरी है । इन विपुल जैन ग्रंथों को देखकर किसी भी शोधार्थी में उनके अन्वेषण की भावना स्वतः ही स्फूरित हो सकती है। इसी भावना ने मुझे जैन साहित्य के अध्ययन-अन्वेषण की ओर प्रेरित किया। इसके प्रथम पुष्प के रूप में मैंने जैन कवि कुशललाभ और उनके साहित्य पर अपनी पी-एच.डी. की उपाधि हेतु शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत किया। इस शोध कार्य के समय अनेक विषयों और आयामों ने मेरा स्पर्श किया और मुझे प्रेरित किया कि जब-तब मैं कुछ शोधपरक कार्य करूं तो उन विषयों को मैं आलोकित करुं । इस इच्छा की पूर्ति मैंने विभिन्न अवसरों पर आयोजित सेमीनारों में तत्सम्बन्धी शोध-पत्रों को प्रस्तुत करके की । इन शोध लेखों का संग्रह ही यह ग्रंथ “राजस्थानी जैन साहित्य” है। जैसा कि मैं स्पष्ट कर चुका हूँ कि यहाँ जैन रचनाकारों की अभिव्यक्ति का माध्यम संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाएं भी रही हैं, किंतु मैंने मात्र जैनियों की राजस्थानी रचनाओं का ही स्पर्श किया है । कारण, राजस्थानी में ही जैनियों ने अपने ऋषि-मुनियों, तीर्थंकरों, गुरुओं से सम्बन्धित व्यापक साहित्य का निर्माण किया । यदि वही साहित्यPage Navigation
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