Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( मातीस )
२१ व्रत विधान पूजा ३२. बोटशकारण व्रतोद्यापन पूजा ३१ सम्मेदशिखर पूजा ३२. सम्मेदशिखर पुजा
अमरचन्द सुमतिसागर ज्ञानचन्द रामपाल
(१८७८) (२०१३) (११) (८६६८)
हिन्दी संस्कृत हिन्दी
गुटकासंग्रह ७६ सोता सतु (६१६६)
यह कविवर भगौतीक्षास की रचना है जो बेहली के अपनश एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में एक बडा गुटका है जिसमें सभी रचनायें भगौलीदास विरचित हैं। सीतासतु मी उन्हीं में से एक रथमा है जो दुसरे गुटके में भी संग्रहीत है। यह संवत १६८४ की रचना है कवि ने जो अपना परिचय दिया है वह निम्न प्रकार है
गुरु मुनि महिंदसण भगौती, रिति पद पकज रेणु भगौती । , कृष्णदास पनि तनुज भगौती, तुरिय गह्मो वतु मनुज भगौती । , नगरि चूडिये वासि भगौती, जन्म भूमि चिर प्रासि भगों नी ।
। अप्रवाल कुल वसं लगि, पंडित पद निरखि भमि भगोती । सीतासातु को कुस' पद्य संख्या ७७ है ।
७७ मृगी संवाद (६१६६}
यह कवि देवराज को कृति है जिसे उन्होंने संवत् १६६३ में लिखी थी। संवाद रूप में यह एक सुन्दर काव्य है जिसकी पद्य सख्या २५० हैं। कवि देवराज पासचन्द सूरि के शिष्य थे। .
७८ रत्नचूटरास (१३००)
. रनचूडरास संवत् १५०१ को रचना है । इसको पद्य संख्या १३२ है । इसकी माषा राजस्थानी है तथा काव्यत्व की दृष्टि से यह एक अच्छी रचना है । कवि अडतपगच्छ के साधु रत्नसूरि के शिष्य थे।
७६ बुद्धि प्रकाश (६३०१)
धेल्ह हिन्दी के प्रच्छे कवि थे। बुद्धिप्रकाश इनकी एक लघ रचना है जिसमें केवल २७ पद्य है। रचना अपदेशात्मक एवं सुमाषित विषय से सम्बद्ध है।
८० वीरचन्द दूहा (६३६६)
यह लक्ष्मीचन्द की कृति है जिसमें भट्टारक वीरचन्द के बारे में ६६ पद्यों में परिचय प्रस्तुत किया है। रचना १६ वीं शताब्दी को मालूम पड़ती है। यह एक प्रकाशन योग्य कृति है। .
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