Book Title: Pyara Khartar Chamak Gaya Author(s): Manoharshreeji Publisher: Jin Harisagarsuri Gyanbhandar View full book textPage 6
________________ अनेक जैन जैनेतरों के मध्य प्रतिदिन प्रवचन होता था ओर उसमें तत्वों का विश्लेषण सरल भाषा में होता था। जैनत्व के प्रति, जिनेश्वर के प्रति, जैनियों के प्रति, जैन धर्म के प्रति, जैन मंदिरों के प्रति, जैन संस्कृति के प्रति, जेनेतरों के मस्तिष्क नत हो उठते थे, संघ का अवलोकन करने पर, उसके कार्यकलापों को देखकर, उनकी प्रभु तन्मयता के दृष्टिगोचर करने पर । यह संघ जिस मार्ग से निकला, वहां के निवासियों के हृदय में गहरी छाप छोडता आया । पूज्य गुरुदेवश्री की दूरंगामी दीर्घदृष्टि एवं शासनप्रभावना की अनुपम भावना ने पदयात्री संघ आयोजक एवं प्रवर्तक मंडल को मार्गदर्शन दिया, फलस्वरूप सर्वथा नवीन मार्ग एवं क्षेत्रका चयन कर जैसे छोटे-२ ग्राम नगरों को मार्ग में लाभ देनेका निश्चय किया गया जो कि अब तक इस लाभ से सर्वथा वंचित रहे है। उन छोटे-२ ग्रामनगरों की भक्ति, गुरुदेव के प्रति अगाध श्रद्धा, स्वामिजनों के सत्कार में तत्परता आदि देखकर संघ के यात्रियों की थकान लोप होने लगी। विकट मार्ग से पसार होता हुआ, प्रतिदिन नवीन अपरिचित जंगलों में उतरता हुआ पद यात्रा संघ क्रमशः स्वगति में प्रगति करता हुआ शंखेश्वर, भोरोल, सांचोर, उपरियालाजी आदि मार्ग में आये अनेक तीर्थों की सम्यक्. प्रकारेण यात्रा करता हुआ अपने स्वान्त को निर्मल बनाता हुआ, कर्मों का आवरण क्षीण करता हुआ, क्रमश: पादलिप्तपुर महातीर्थ पर पहुंचा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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