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जैन शासन के दिव्य ज्योतिर्षर, खरतरगच्छ नभोमणि, परम पूज्य गुरुदेव, अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागरजी
म. सा. की पावन निश्रा मेंपैदलयात्री संघ का शुभ प्रसंग
वन्दनवंदन पदपद्म प्रभु, शत्रुजय के नाथ चौरासी गच्छाधिपति. दत्तकुशल गुरुहाथ १
सन्दर्भस्वर्णाङ्कित इतिहास पुस्तिका, खुली नवीन अध्याय जुड़ा छरिपालता संघ सिद्धगिरि, यात्रार्थ कान्ति भाव उमड़ा २ भव्यभाव का वेग थामने, दृढ संकल्पी भंवरजी बने आद्योपान्त मनोहर वर्णन, लगे स्वतः क्रमशः उभरने ३
पू. गुरुदेव ! पालीताणा मेंसिद्धक्षेत्र की पावन भूमि, तीर्थपति प्रभुऋषभ जिणंद प्रतिमानगरी गिरि छाया में वर्तित है अहोनिश आनंद ४ रोड तलहटी मध्यस्थली, गुरुभक्ति स्मृति का है प्रतीक विश्रुत हरिविहार नाम प्रतिदिन, आते हैं यात्री धार्मिक ५ पटस्थित प्रसन्नवदन गुरुवर, अनुयोगाचार्यश्री थे ध्यानस्थ मम भावों का साकाररुप, श्रद्धेय ! प्रतिष्ठित हो प्राणस्थ ६
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