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जिनहरिसागरसूरि शान-प्रकाशन-१३ प्यारा खरतर चमक गया
प. पू. गुरुदेव, प्रज्ञापुरुष अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागरजी
म. सा. की पावन निश्रा में संयोजित बाडमेर से पालीताणा पदयात्रा महासंघ का पद्यबद्ध विवरण
संघ प्रस्थान बाड़मेर से ता. ३१-१-१९८० संघ प्रवेश पालीताणा ता. २३-३-१९८०
: रचयित्री : शासन दीपिका, छत्तीसगढ़ रत्ना विदुषी आर्या
श्री मनोहर श्रीजी म. सा.
: अर्थ सहायक : विदुषी आर्याश्री विचक्षणश्रीजी की शिष्या विदुषी आर्याश्री अकलश्रीजी के
सदुपदेश से--- ५००) श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ, जोधपुर
: प्रकाशक : . श्री जिन हरिसागरसूरि शान भंडार
जिन हरिविहार,
पालीताणा ३६४२७० वि. सं. २०३७ प्रत २०००
वीर सं २५०६
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भूमिका
मंद, सुगंध समीर के झोकों से हिलते हुए वृक्षों के पत्तों की छनछनाहट आवाज उद्घोष कर रही थी, संत मनीषी, प्रज्ञापुरूष के मानसिक विचार भी कल्याणी भावना का उद्घोष कर रहे थे । और विचारों के चरम मंथन में एक स्फुरणा स्फुरायमान हुई और उस स्फुरणा पर सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन सिंहावलोकन किया एवं संकल्प कर लिया, उस स्फुरणा को कार्य रूप में परिणित करने के लिये कृतसंकल्पी हो गये।
उस कल्याणी स्फुरणा-भावना को साकार रुप देने के लिये संतमनीषी ने एक व्यक्ति को चुना-श्री भंवरलालजी बोहरा.।
गुरुदेव के आदेश की अवहेलना वे स्वप्न में भी नहीं कर सकते थे। गुरुदेव के प्रति उनके मन में रही पूर्ण निष्ठा, पूर्ण भक्ति, पूर्ण समर्पण, प्रतिपल हर पल टपकता रहता है।
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ओर उस शुभ घडी ने मानव जीवन में प्रवेश किया, जिस पावन घडी में स्फुरणा स्व-लक्ष्य की ओर गति बढाने में प्रथम कदम रख रही थी। माघ सुद १५ के दिन प्रातःकालीन शुभ मुहूर्त में "बाडमेर से पालीताणा पद यात्रा संघ" का जैन न्याति नोहरा, बाडमेर से प्रस्थान हुआ । नगर के बाहर विदाई समारोह का भव्य आयोजन ३०,००० जनता के मध्य हुआ, जिसकी अध्यक्षता बाडमेर जिलाधीश श्री फतहसिंहजी चारण ने की एवं मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान के कमिश्नर श्री देवेन्द्रराजजी मेहता पधारे थे। पुलिस अधीक्षक, डी. आई जी., आई. टी. ओ, आदि एवं बाहर से पधारे अन्य कई महानुभाव आदि गणमान्य व्यक्तिओं मध्य हुआ, विदाई समारोह नगर के लिये अति आकर्षक एवं अभूतपूर्व था । हाथी. घोडे, ऊंट, निशान, नगारे. शिखरबद्ध जिनालय, मांगलिक वाद्ययंत्र आदि अनेक शोभा सामग्री से सुसज्जित श्री संघ ने प्रयाण किया । और नियमित रुप से नियत मंजिलें तय करता हुआ क्रमशः लक्ष्यपूर्ति की ओर अग्रसर होने लगा।
पद यात्रा संघ अपने आप में गंभीर महत्व रखता है। केवल धार्मिक जीवन में ही नहीं अपितु सामाजिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक जीवन में भी अपना स्वतंत्र दृष्टिकोण रखता है। धर्मशास्त्रों में जहाँ तहाँ पद यात्रा संघ की अनिवार्यता को उद्घोषित किया गया है। ___ जीवन में कुछ घडियां ऐसी भी जाती है. जो हमारे संपूर्ण जीवन को नई दिशा प्रदान कर देती है, ऐसे निर्णायक क्षण जो संपूर्ण जीवन के लिये रोशन मीनार का
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काम दे जाते हैं। हमारे जीवन में नई रोशनी एवं खुशियाँ आ जाती है, प्रसन्नता के झरने हमारे जीवन में झरने लगते हैं, आल्हादकता की नई कृषि हमारे जीवन में लहलहा उठती है । हमें निर्णय करना है कि वे निर्णायक घडियां कौनसी है । शास्त्रकार फरमाते है कि पूज्य गुरुदेवों के पावन श्री चरणों में व्यतीत चन्द क्षण भी हमारे जीवन की दिशा का निर्धारण करने में सक्षम है, ओर ये घडियां, ये क्षण, ये जीवन निर्णायक पल, जीवन उन्नायक कल, पद यात्रा संघ में हमें सुलभता से प्राप्त होते हैं।
एक बार सही दिशा की सम्यक् संप्राप्ति होने के पश्चात् फिर जीवन में ज्वारभाटा नहीं रहता, जीवन में भटकावों की इति श्री हो जाती है। और भटकन समाप्त हुई कि जीवन गहरी ऊचाईयों की ओर अग्रसर हो जाता है, ओर होता ही रहता है तब तक, जब तक आत्मा परमात्मा नहीं बन जाता, संसारी मुक्त नहीं बन जाता।
और सही दिशा प्रबुद्धों के सानिध्यता के अभाव में संप्राप्त होना दुष्कर है।
हमें गर्व है कि इस पदयात्रा संघ को जिन्होंने अपनी निश्रा प्रदान की, वे प्रबुद्घ गुरुदेव श्री कान्तिसागरजी महाराज साहब गहरी सरलता से स्थान-२ पर शानपिपासुओं को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम रहें।
एक अन्य दृष्टिकोण से यह पदयात्रा संघ जैन धर्म के तत्वों के प्रचार प्रसार के लिये सिद्ध साधन परिलक्षित हुआ । मार्ग में आये प्रत्येक छोटे-बडे, ग्राम शहर के
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अनेक जैन जैनेतरों के मध्य प्रतिदिन प्रवचन होता था ओर उसमें तत्वों का विश्लेषण सरल भाषा में होता था।
जैनत्व के प्रति, जिनेश्वर के प्रति, जैनियों के प्रति, जैन धर्म के प्रति, जैन मंदिरों के प्रति, जैन संस्कृति के प्रति, जेनेतरों के मस्तिष्क नत हो उठते थे, संघ का अवलोकन करने पर, उसके कार्यकलापों को देखकर, उनकी प्रभु तन्मयता के दृष्टिगोचर करने पर । यह संघ जिस मार्ग से निकला, वहां के निवासियों के हृदय में गहरी छाप छोडता आया ।
पूज्य गुरुदेवश्री की दूरंगामी दीर्घदृष्टि एवं शासनप्रभावना की अनुपम भावना ने पदयात्री संघ आयोजक एवं प्रवर्तक मंडल को मार्गदर्शन दिया, फलस्वरूप सर्वथा नवीन मार्ग एवं क्षेत्रका चयन कर जैसे छोटे-२ ग्राम नगरों को मार्ग में लाभ देनेका निश्चय किया गया जो कि अब तक इस लाभ से सर्वथा वंचित रहे है। उन छोटे-२ ग्रामनगरों की भक्ति, गुरुदेव के प्रति अगाध श्रद्धा, स्वामिजनों के सत्कार में तत्परता आदि देखकर संघ के यात्रियों की थकान लोप होने लगी।
विकट मार्ग से पसार होता हुआ, प्रतिदिन नवीन अपरिचित जंगलों में उतरता हुआ पद यात्रा संघ क्रमशः स्वगति में प्रगति करता हुआ शंखेश्वर, भोरोल, सांचोर, उपरियालाजी आदि मार्ग में आये अनेक तीर्थों की सम्यक्. प्रकारेण यात्रा करता हुआ अपने स्वान्त को निर्मल बनाता हुआ, कर्मों का आवरण क्षीण करता हुआ, क्रमश: पादलिप्तपुर महातीर्थ पर पहुंचा ।
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मार्ग में आये बरवाला नगर में पू. नेमिसरिजी म के समुदाय के वयोवृद्ध आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी म., जो संघ प्रेरणा दाता गुरुदेव के अनन्य प्रेमी है, बिराजमान थे। समन्वयता के प्रतीक गुरुदेव श्रीने संघ में पधारने की विनंती की जिसे स्वीकार कर आचार्य श्रीने सम्मिलित होकर अपने अक्य स्वभाव को उद्घोषित कर दिया।
पालीताणा महातीर्थ पर भव्य प्रवेश प्रातःकालकी सुरीली हवा के मध्य सुरीले वाद्ययंत्रों की झनझनाहट ने प्रत्येक मानव को पालीताणा स्टेशन के समीप यशोविजय जैन गुरुकुल की ओर जो आकर्षित कर दिया।
सूर्योदय के कुछ ही क्षणों के पश्चात् जुलूस के रूप में मानव मेदिनी चल पडी। सबसे आगे काष्ठ का हाथी था, उसके पीछे इन्द्रध्वजा, अपनी ध्वजा फहराती हुई संघ प्रवेश को उद्घोषित कर रही थी। उसके पीछे घोडे, ऊँट और बाद में स्थानिक बालाश्रम एवं गुरुकुल के ३०० बालक ३-३ की लाईनों में सुव्यवस्थित ढंग से कदम मिलाते हुए बढ रहे थे। उसके बाद स्थानिक बेंड ओर तत्पश्चात् जन-२ को अपनी ओर आकर्षित करता हुआ हाथी अपनी मस्त चाल से गतिमान था। उसके पीछे अहमदाबाद का प्रसिद्ध जीया बेंड अपनी भक्ति धुनों से भक्ति-रसिक मानव मन को भक्ति से ओत-प्रोत कर रहा था। ओर उनके बाद ८ फुट ऊची विशाल डोली में विराजमान, हजारों मनुष्यों के केन्द्र बिन्दु, पूज्य गुरुदेव, श्रमण शिरोमणि, जैन जगत के प्रकाश स्तंभ, नई चेतना के ऊर्धारोहक-प्रेरणा स्रोत सीमाओं से परे विशाल व्यक्तित्ववान् समन्वयता के प्रतीक प्रज्ञा
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पुरुष, अनुयोग आचार्य श्री कान्तिसागरजी महाराज साहब जन समूह को आशीर्वाद प्रदान करते हुए पधार रहे थे। उनके साथ पूज्य आचार्य श्री यशोभद्रसरिजी म , श्री रेवतसूरिजी म , श्री लब्धिचंद्रसूरिजी म, श्री शान्तिविमलसूरिजी म. श्री यशोदेवसूरिजी म, श्री अरिहंतसिद्धसूरिजी म., श्री भानुचंद्रसूरिजी म , श्री जयचंद्रसूरिजी म. पंन्यास श्री हेमप्रभविजयजी म. गणिवर्य श्री हेमप्रभविजयजी म आदि मुनि मंडल जुलूस की शोभा में अभिवृद्धि कर रहा था। तत्पश्चात् मालाओं से लदे संघपतियों की चाल तो देखने जैसी थी। और उसके बाद विशाल मानव समूह चल रहा था। चारों ओर मानव ही मानव नजर आ रहे थे। उनके पीछे भव्य शिखरबद्ध जिनालय शोभा को दुगुनी कर रहा था। उनके पीछे बीजापुर का प्रसिद्ध बेंड आकाश गुंजारव कर रहा था। फिर शताधिक आर्या मंडल और फिर सन्नारियें। दो मील लंबा असा वरघोडा पालीताणा की प्रथम एवं तिहासिक घटना है। जिलाधीश, नगरपालीका के चीफ आफिसर, पुलिस अधीक्षक, कस्टम आफीसर, आई. टी. ओ आदि शताधिक सरकारी अफसरों ने पूज्य गुरुदेव को नमन कर जुलूस की अगुआनी की।
पद यात्रा संघ, पालीताणा महातीर्थ पर प्रतिवर्ष ३-४ आते ही रहते हैं, लेकिन जैसा आज तक नहीं हुआ, जब नगर की ९८ जातियो ने पृथक्-२ रुपसे पूज्य गुरुदेव को वंदन किया हो एवं संघपतियों को पुष्पहार पहनाकर उनका अभिनंदन किया हो।
नगर के प्रत्येक मकान के ऊपर देखो, पेडों पर देखो,
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छत्तों पर देखों, जहाँ देखो वहाँ मानव ही मानव । शहर का चौडा पथ भी संकीर्ण बन गया था।
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पदार्पण पर मानव जिस प्रकार उलटता है उसी प्रकार पूज्य गुरुदेव एवं संघ के नगर प्रवेश को देखने मानव मेदिनी उलट पडी थी। स्थान-२ पर कृत गहुंलियों ने नगरकी धार्मिक प्रवृत्ति को उद्बोधित किया।
आणंदजी कल्याणजी की पेढी, मोतिसुखिया, ब्रह्मच. श्रिम, हरिविहार. माहेश्वरी समाज, मुस्लिम समाज, आदि पालीताणा इकाई की सभी जातियों ने संघपतियों को पुष्पहार पहनाकर हर्ष प्रकट किया। पुरनारियाँ स्थान-२ पर पुष्पवर्षा द्वारा स्वयं के उल्लासों को प्रकट कर रही थी। सबसे महत्त्वकी बात तो यह थी कि उस दिन कसाईओं ने स्वेच्छा से कसाईखाना बंद रखा, और जुलूस में भाग लेकर अपनी धार्मिक भावना का उद्बोधन किया।
माधवलाल जिनमंदिर के दर्शन के पश्चात् हरि विहार में पदार्पण हुआ। वहाँ नवनिर्मित जिन हरिसागरसूरि शानभंडार का उद्घाटन दानवीर श्री केवलचंदजी खटोड ने किया और मांगलिक प्रवचन के पश्चात् सभा विसर्जित की गई।
और उसी दिन फलेचुनडी का आयोजन हुआ, जिसका सारा श्रेय संघपति सेठ श्री मणिलालजी डोशी को है । जैसा आयोजन गत ३०० वर्षों में नहीं हुआ था। इस आयोजन में सक्रिय कार्य करनेवाले श्री मिलापचंदजी गोलेच्छा को अनेकश धन्यवाद है। और पालीताणा
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निवासी श्री हीरालालभाई आदि ने इस कार्य को सफल एवं सश्रेय बनाने में जो उत्साह व तन्मयता बताई उसका दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है। उसी दिन अ०भा०ख० महासंघ का स्नेह सम्मेलन था जिसमें कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किये गये।
द्वितीय दिन मालमहोत्सव विविध कार्यक्रमों के साथ सुसंपन्न हुआ। बोली बोलकर प्रथम संघपति श्रीमान् कम लसिंहजी दुधेडिया, कलकत्ता को श्रीमान् शंभुमलजी रांका, व्यावर वालोंने माला पहनाई। दोपहर को ऊपर मूल टुंक में दादासाहेव श्री भव्य पूजा पढाई गई।
इस प्रकार पूरे भारत में यशस्वी बना पदयात्रा संघ एक ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व घटना बनी, जो इतिहास में अविस्मरणीय रहेगी।
-~-मुनिश्री मणिप्रभसागरजी
इति समाप्तम्
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जैन शासन के दिव्य ज्योतिर्षर, खरतरगच्छ नभोमणि, परम पूज्य गुरुदेव, अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागरजी
म. सा. की पावन निश्रा मेंपैदलयात्री संघ का शुभ प्रसंग
वन्दनवंदन पदपद्म प्रभु, शत्रुजय के नाथ चौरासी गच्छाधिपति. दत्तकुशल गुरुहाथ १
सन्दर्भस्वर्णाङ्कित इतिहास पुस्तिका, खुली नवीन अध्याय जुड़ा छरिपालता संघ सिद्धगिरि, यात्रार्थ कान्ति भाव उमड़ा २ भव्यभाव का वेग थामने, दृढ संकल्पी भंवरजी बने आद्योपान्त मनोहर वर्णन, लगे स्वतः क्रमशः उभरने ३
पू. गुरुदेव ! पालीताणा मेंसिद्धक्षेत्र की पावन भूमि, तीर्थपति प्रभुऋषभ जिणंद प्रतिमानगरी गिरि छाया में वर्तित है अहोनिश आनंद ४ रोड तलहटी मध्यस्थली, गुरुभक्ति स्मृति का है प्रतीक विश्रुत हरिविहार नाम प्रतिदिन, आते हैं यात्री धार्मिक ५ पटस्थित प्रसन्नवदन गुरुवर, अनुयोगाचार्यश्री थे ध्यानस्थ मम भावों का साकाररुप, श्रद्धेय ! प्रतिष्ठित हो प्राणस्थ ६
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सागर की गहराई अनन्त, कर्तव्य उमंग वेग अवरुद्ध प्राची लाली छिटकाव किया, चिंतनधारा में बहे प्रबुद्ध ७ शब्दातीत उपकार सदा ही, तीर्थंकर भगवन्तों का पुण्यशाली शासन सेवाकर जन्म कृतार्थ करे निज का ८ मस्तिष्क पटल की छायामें हुई ऐतिहासिक घटना चित्रित संघ सह पैदल यात्रा करने बस हृदयावाज किया प्रेरित ९ मन ही नही आत्मा है खोई, यात्रा के पुनीत विचारों में घंटो बीते इन ख्वाबों में, सुनहले स्वप्न सितारों में १० वंदन गुरुदेव ! शब्द सुनकर उद्घाटित किया नयन द्वारी नतमस्तक खडे भंवर बोहरा, धर्मलाभ शब्द गुरु उच्चारी ११ प्रथम कुशलपृच्छा सह पूज्यवर, धर्मप्रेमी जन लिया संभाल प्रेषित उत्तर बोहराजी का था, इक अर्जी सुनिये फिलहाल १२ आशा दीप प्रज्वलित यह, तव कृपादृष्टि स्नेह पाकर मनमयुर भी नाच उठेगा, इच्छित अमृत वर्षा पर १३ करबद्ध मस्तक पूज्य पदतलधर, बोले सुन लेना स्वामी पवित्र करो भूमि मरुधर की, चातुर्मास हो आगामी १४ पूर्वकार्य उपधान तपस्या में, नेतृत्व अपेक्षित है तीर्थ नाकोड़ा पधारेंगे, स्वीकृति परध्यान ये केंद्रित है १५ बडे ध्यान से श्रवण किये पर पूर्व विचार न विसराये बोहराजी सन्मुख गुरुवर अब निजी भावना दर्शाये १६ पैदल यात्री संघ साथ में लिये प्रभु आदीश्वरको नमनकरे तन मन धन अर्पित भक्ति में, भन्यात्मन् सिद्धि सहज वरे १७
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हृदयस्पर्शी संक्षिप्तसार सुन बोल उठे मम हृदयहार आदेश सभी स्वीकृत होगा तेरी वाणी मेरे विचार १८ जय घोष से नभमंडल गूंजा, थी उभय विचारों की सिद्धि परस्पर मंजुरी लेकर वे खुश मिल गई हो समृद्धि १९ पालीताणा से बिहार दो हजार छत्तीस विक्रम संवत् कृष्णाष्टमी मिगसर पालीताणा से प्रस्थान किया प्रातः शुभ वेला में गुरुवर २० नूतन लघुवयी मुनिवृन्द संग, विचरण अरु धर्मप्रचार किया अहमदाबाद की जनता ने गुरु उपदेशामृत लाभ लिया २१ त्रिदिवसीय वाणी की वर्षा, लाखों लोगो का दिल हर्षा क्रमशः साचोर में उद्बोधन कर अन्यक्षेत्रों को भी स्पर्शा २२
प्रथम उपधान
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प्रतीक्षामग्न भंबरजी थे खुशियों का पारावार नही नाकोडा निकट पधार रहे, श्रद्धेय ! शासन श्रृंगार सही २३ शुभ लग्न पोषकृष्णा षष्ठी, नाकोड़ा तीर्थ प्रवेश किया सभी प्रान्तों के तपप्रेमी को आमंत्रण पत्रिका भेज दिया २४ उपधानपति बोहराजी है, अनुयोगाचार्य कान्तिसागर जिनकी पावन निश्रा में स्थित हुए तपस्वीजन आकर २५ प्रारंभ हुई उपधान विधि, दिन माघ वदि द्वितिया का था चौरासी ऊपर चार शतक. तप जप उपधान वहन कर्ता २६ साधना अहोनिश शतार्ध एक. संयमी जीवन परिपालन तज भौतिक सुख अंतर्मुखी हो करे अशुभ भावों का परिमार्जन २७ वैज्ञानिक शोधित अणुशक्ति ने जीवन का संहार किया जिन प्ररुपित तप की शक्ति, आत्मशुद्धि स्वविकास किया २८
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प्रतिदिन जिनवाणी सार श्रवण, अप्रमत्त रहन सत्संगमिलन । मात्मशांति की अनुभूति अरु रत्नत्रयी का आराधन २९ साधनाकाल समापन भव्य मालोत्सव कार्यक्रम आयोजित दर्शक जन समूह अपार मध्य विधिवत् संपन्न क्रिया निर्णीत ३० गुरुदेव ! आपकी निश्रा में बीते क्षण भूल न पायेंगे तव महर नजर प्रेरक प्रवचन, जीवन्त स्मृतिपट छायेंगे ३१ उदार हृदयी संघपतिजी कृत सेवा तन मन धन अनुपम अब विछुड़ रहे आज सभी स्वीकारो हार्दिक अनुमोदन ३२ दर्शक यात्री तपस्वीजन, संघपति स्वगृह की ओर चले नामानुरुप गुण कान्ति ही कर्त्तव्यक्षेत्र में सदा ढले ३३
नाकोड़ाजी से विहार : आहोर प्रतिष्ठा शासनप्रभावना करते हुए, आहोर संघ के आग्रह पर त्रयोदशी शुक्ल बैसाखी, प्रतिष्ठित किये कुशल गुरुवर ३४
. ताराबहन दीक्षाअति प्रशंसनीय रहा संघका हर्षोल्लास सह हुआ काज ताराबहनको दीक्षित कर शासनप्रभा नामकरण सरताज ३५
स्वर्गस्थ दर्शनपुनः विनंती हुई पधारो बालोतरा संघ की आवाज विहार किया मोकलसर पहुँचे, स्वर्गस्थ गुरु दर्शन मुनिराज ३६ विभिन्न प्रान्त के लोगों ने अंतिम यात्रा में भाग लिया बाडमेर संघ बोली लेकर मुनिश्री का दाह संस्कार किया ३७ सुप्रसिद्ध न्याय व्याकरण तीर्थ साहित्यशास्त्री दर्शन थे। पर अहंभावका अंश नहीं, गुरुदेव भक्ति में समर्पित थे ३८
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अस्वस्थ रहे कई वर्षों तक अन्त करकालने ग्रसित किया नश्वर जगति में अमरत्व का दिया बोध शोक को दूर किया ३९
बालोतरा प्रतिष्ठामोकलसर से विहार हुआ बालोतरा पधारे मृदुभाषी गुरुभक्त मनोरथ पूर्ण हुआ, प्रतिष्ठा में खर्चे बहुराशी ४०
प्रवर्तिनीजी से मिलन प्रतिष्ठा कार्य हुआ सत्वर, प्रस्थान किया जयपुर की ओर मणि मुक्ति सुयश विमल संगमें, विद्वद् मुनिजन तप है कठोर ४१ प्रवर्तिनीजी विचक्षणश्रीजी की वेदना से चिंतित थे सभी सुखपृच्छा दे दर्शन पूज्यवर,द्विदिवसीय स्थिरता किया तभी ४२ बाडमेर का ऐतिहासिक चातुर्मास
बाडमेर प्रवेशोत्सवपूर्व निर्णय को ध्यान में रख, अति तीव्र गति से विहार किया बाडमेर प्रवेशपूर्व सेवासदन में पूज्यश्रीने विश्राम लिया ४३ उदधितरंगवत् भक्ति लहर, उत्साह अपूर्व संघ छाया अनुयोगाचार्य के स्वागत में बाडमेर स्वर्गसा सजाया ४४ सन्मानद्वार बहुरंगी ध्वजा, दर्शनीय लगा कान्ति मेला श्रीफल प्रभावना वितरण का द्विदिवसीय लाभ भंवर झेला ४५ आषाढ शुक्ल तेरस प्रभात, बधाने आये सभी नरनारी सेवासदन से प्रारंभ जुलूस संकीर्ण मार्ग हुआ उस वारी ४६ अशोक बेंड जयपुर का था महावीर पाच बेंड मधुरध्वनि जनता सारी मंत्रमुग्ध बनी, सुनते खिल रही हृदयकली ४७ लाखों नजरों की प्यास बुझी दर्शन कर विरल विभूति के न्यातिनोहरा में प्रवेश किया, अब चातुर्मास वर्णन आगे ४८
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. चातुर्मासिक कार्यक्रमसावन की रिमझिम वर्षाने प्रकृतिको सुन्दर रुप दिया । व्यास्यानवाचस्पति की वाणी, प्रवृति शोधन बोध किया ४९
परमेष्ठिपद जापस्काइलैब के खतरे से, भयग्रस्त बनी जनता सारी पंचदिवसीय परमेष्ठीपद विश्वशान्ति अप हुआ भारी ५०
आढ़पीड़ित सहायताद्वितीय संकट था हृदयमेदी लुणी नदी मे प्रवाह बढा बाड़मेर नगर के गांव नगर सैकड़ो पर आफत आन पडा ५१ करुणासागर ! दयनीय स्थिति का संघ को भान कराया आत्मवत् सर्वभूतेषु, महावीर सन्देश सुनाया ५२ महत्वपूर्ण यह कार्य संघ का संतप्त शांति पहुंचाना खाद्य सामग्री वस्त्रादि बाढ़पीडित किया प्रदाना ५३
भगवती सूत्रवांचनश्रुतभक्ति हेतु भव्य जुलूस, भगवती सन्मान बढ़ाया श्रीसंघ के आग्रह पर प्रबुद्ध, भगवती सूत्र सुनाया ५४ शंकराचार्य कृत प्रश्नोत्तरी पे प्रवचन किया प्रारंभ जैन जैनेतर श्रोतागण, संख्यातीत करते अचंभ ५५
सार्वजनिक प्रवचनरक्षाबन्धन पर सार्वजनिक प्रवचन जन मानस भाया जनता के आग्रह से गुरुवर द्वितीय प्रोग्राम बनाया ५६ पन्द्रह अगस्त जन्माष्टमी को, छात्रावास में उद्बोधन "मानवधर्म को कृष्ण की देन" जनप्रिय विषय का शोधन ५७
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जिलाधीश गणमान्य व्यक्ति, धाराप्रवाह रसपान किया जेन जैनेतर बड़ी संख्या में, गुरूदेव का गुणगान किया ५८
___ केशलुचनसाधुविधि समझाने पूज्यघर पटस्थित किया केशलचन धन्य २ मुनिका जीवन, दर्शक जनता कृत अनुमोदन ५९ चातुर्मास अवधि में विभिन्न प्रान्तो से आए दर्शनार्थी बाड़मेर के जैन बन्धु थे भाग्यशाली सेवा प्रार्थी ६०
अभिनन्दन समारोहअखिल भारतीय महासंघ अध्यक्ष जवाहरजी राण्यान मंत्री दौलतसिंहका विराट् सभा मध्य किया सन्मान ६१ ऊँट आकृति मानपत्र श्रीसंघने सादर मेट किया अध्यक्ष मंत्रीजी गुरुवर से, आशिर्वाद वासक्षेप लिया ६२ जोधपुर से संघ ले आये, बलवन्तराजजी भंसाली मालू पारख साथ में लाये गुरुदर्शन किये पुण्यशाली ६३ दर्शनार्थ संघ ले आये, बाडमेर संघ सन्मान किया अमिनन्दन पत्रक कर अर्पित, आयोजन को सफल किया ६४
पर्युषण पर्वअवर्णनीय उत्साह संघ में, पर्वाधिराज जब आया व्याख्यान वाचस्पति कृत वाचन कल्पसूत्र ने सुमाया ६५
अभूतपूर्व तपश्चर्यातपस्या की तो झड़ी लगी थी, मासक्षमण हुवे चार अर्धमास की संख्या उन्नीस, त्रयोदश छव्वीस करनार ६६ एकसौ दश थे दश उपवासी, नौ किये प्रण एक पचास अट्ठाई तपस्वी अव्यासी, कैसा सुन्दर चौमास ६७
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छठ्ठ अट्ठम पंचरंगी सभी गिनती शत उपर जानो प्रत्यक्ष प्रभावी गुरुदेवश्री की महिमा को पहिचानो ६८
विराट् जुलुससन्मान किया तपस्वी जनका, समारोह था भारी विराट जुलूस की शोभा देखने उमड़ पडे नरनारी ६९
छात्रावास व्यवस्थाछात्रावास भोजनशाला को पुन: नवीनतम प्राण दिया संरक्षण नई कमेटी चयन, उस संस्थाका उत्थान किया ७०
___ अ० भा० ख० का० का बैठकभन्यायोजन क्रमावली में मिला संकेत गुरुवर का अखिल भारतीय खरतरगच्छ संघ एकत्रित करवाने का ७१ संघटित करने गच्छ को, द्विदिवसीय डेट किया निश्चय हुई बैठक यथासमय संघ की, प्रेषित विचार लिया निर्णय ७२ सामाजिक धार्मिक एकता पर, किया मर्मस्पर्शी पूज्य संवोधन दानवीर मणीडोसीजी का जैन संघ किया अभिनन्दन ७३ ऊँट आकृति मानपत्र दे, व्यक्तित्व को दर्शाया अन्य आगन्तुक प्रमुखजनों का भी सन्मान बढ़ाया ७४
संगीत मंडलप्रभुभक्ति करने संगीत मंडल तीन स्थापित किया उपकारी दादागुरुदेव जीवनवृत्त पर सचित्र पुस्तिका छपी न्यारी ७५
पुस्तक प्रकाशनविद्वदशिरोमणि प्रथम शिष्य मणिप्रभसागरजी कृत संपादन "श्रमा कल्याण चारित्रम्” पुस्तक का हुआ प्रकाशन ७६
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ऐतिहासिक चातुर्मास हुआ, वर्णन कर पाना शक्य नही आमंत्रणपत्र की सुन्दरता, संघभक्ति शब्दातीत रही ७७ तेरी गरिमा से प्रभावित हो. जैनेतर जैन सभी हर्षित मुनिवृन्द अल्पवयी अति सुन्दर, चुम्बकत्व कर रहा आकर्षित ७८ शिष्य मंडल
शिष्यरत्न में प्रथम स्थान, सर्वोपरि श्री मणिप्रभसागर गुरुकृपादृष्टि पा धन्य हुए अभिन्न प्रेम ज्यू पयसाकर ७९ कर्तव्यध्यान बडे बुद्धिमान, किंचित भी नही है अभिमान कान्ति आन ही मणि प्राण, सतत परिश्रमी ज्ञानवान ८० मुक्ति सुयश विमल है साथ, साध्वीजी का चातुर्मास साध्वी प्रमुखा प्रमोदीजी शिष्या मंडली सह किया आवास ८१ बाडमेर से विहार
चौमासिक काल बीता सानन्द विदाई की घडिया आई विरह वेदना व्यथित संघकी हृदय कलियां मुरझाई ८२ द्वितीय उपधान
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उपधानपति रामसरवासी, प्रभुलालजी मालू आग्रहपर निर्णीत उपधान नाकोड़ाजी, पधारे अनुयोगाचार्य प्रवर ८३ उपधान प्रवेश प्रथम मुहुर्त, मिगसर वदी पांचम शुक्रवार छः सौ सोलह तपस्वीजन हुए क्रियाशील विधि अनुसार ८४ प्रातः सन्ध्या में प्रतिक्रमण, प्रभुदर्शन गुरुवंदन करना काउस्सग्गमाला नियमानुसार, बह रहा बीरवाणी झरना ८५ मालू परिवार भाग्यशाली, तप भक्ति में तल्लीन वना तन मन धन अर्पित सेवा में, उपधानपतिजी उदारमना ८६
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शासनसम्राट की छाया में तप जप का ठाठ लगा भारी पौष शुक्ल दिन एकादशी, दो हजार छत्तीस सुखकारी ८७) मनोहर माला परिधान दृश्य, हजारों नेत्र निहार रहे गुरुवर उपकार महान किया, नतमस्तक हो माटूजी कहे ८८ उपधान समाप्ति पर गुरुवर, नाकोड़ा से बिहार किया अतिशीघ्र वाडमेर जा पहुंचे, अव द्वितीय भाग प्रारंभ हुआ ८९
द्वितीय भाग
नामाक्षर पद्यावलीकाली घटा में विद्युत से तुम चमक उठे इस कलियुग में न्याति नोहरा प्रस्थित पैदल संघप्राण! नमन तव पदयुग्मे ९० तिर्थाधिराज गिरि प्रांगण में, शोमे हरि पटाधीश गुरुवर वासर भानु निशा शशिवत् , खरतर सम्राट हे ज्योतिर्धर! ९१ सागरसम हृदय विशाल उदात्त विचार विश्व फैली ख्याती गच्छाधिपति भाषाधिकार, प्रवचन शैली मन को भाती ९२ रग रग में समायी गुरुभक्ति, समर्पण भाव साकार किया जीवनस्मृति रहे गुरुदेव की, हरि विहार निर्माण किया ९३ मनोहर परिकर मध्य कान्ति, परिधि में शिष्य शोभित है हारपदक मणि दीप्तिवन्त, मोतीसा मुक्ति प्रबोधित है ९४ राजमार्ग दर्शक प्रबुद्ध, प्रभु महावीर पथ अनुगामी जग उद्धारक मम श्रद्धास्पद, त्रुटि को क्षमा करे स्वामी ९५ सादर अभिनन्दन है हार्दिक व्यक्तित्व अनूठा बेमिशाल मनोहर मंडल हर्षित गुरुवर, समीप पहुंचे अस्सीकी साल ९६
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___ संघ भूमिकामहत्वपूर्ण था कार्य सामने, बाडमेर से पालीताणा पैदल यात्री संघ सहित, ऋषभ जिणंद दर्शन पाना ९७ पूज्येश्वर प्रखर प्रेरणा और प्राप्त था निर्देशन चातुर्मास अवधि से ही, एक जुट हुवे कार्यकर्तागण ९८ संघपति भवरजी बोहरा का था दिल उदार लिया संघभार हार्दिक लगन सह कार्यमग्न, दिनरात एक किया उसवार ९९ पैदलयात्री संघ कार्यक्रम की रूपरेखा तैय्यार हुई प्रचार पत्र द्वारा पूरे भारत में सौरभ फैल गई १०० वर्तमान युग में खरतरगच्छ की शान बढ़ाने वाला है अनुयोगाचार्यश्री की निश्रा में ऐतिहासिक संघ निराला है १०१ खरतरगच्छीय मुनि साध्वीगण, शामिल हो पुनीत प्रवास में आग्रह करने संघ प्रतिनिधि आये छत्तीसगढ़ प्रान्त में १०२ आदेश लिखित पुज्येश्वरका रख सन्मुख बोल उठे सत्वर अति शीघ्र रवीकृति बक्षावें, बडे खुश थे मंजुरी पाकर १०३ गुरुकृपादृष्टि जीवन्त बने, मैं हूँ उपकारों से उपकृत निश्रीप्रदान यात्रा हेतु, दूरी में याद किया प्रेषित १०४
बाडमेर से संघ प्रस्थान
प्रथम दिवषऐतिहासिक संघ की भव्यछटा, वर्णन करने मन झुम उठा प्रारंभिक मेला दर्शनीय था, बाडमेर का अनूठा १०५ अनुयोगाचार्य की निश्रा में. ठहरे कई प्रान्तो के यात्री स्वकार्यलीन व्यवस्थापक, किन शब्दों में कहुँ कृतखात्री १०६
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भव्य जुलुस
माघी पूनम मध्याह्न समय कर्णप्रिय मधुरध्वनि गुंजित है वाजिंत्र गीत संगीत लहर कर रहा मुग्ध स्पंदित है १०७ विराट् जुलूस सह पदयात्री, अपूर्व संघ प्रयाण किया गुरु पूनम दिन सिद्धियोग, सिद्धाचल लक्ष्य में ठान लिया १०८ ध्वजा व्योम में फहर रही, मस्ती में हाथी झूम रहा गति शील अश्व अरु ऊँट स्थित रक्षक नगारा पीट रहा १०९ चालीस हजार जनमेदनी मानो जन प्रवाह बाढ़ आया मुनिवृन्द मध्य उच्चासन स्थित, शासन सम्राट दर्श पाया ११० प्रभु महावीर की प्रतिभा एक सुन्दर रथ में शोभ रही रथ गतिशील करने हेतु बैलो की जोडी दौड़ रही १११ जय तीर्थपति जय गुरुदेव, था कर्णमेदी शब्द जयकार प्रसन्नवदन मम हृदयहार, संजोया स्वप्न किया साकार ११२ खेतजी प्याऊ के समीप था सुन्दर रंग मंडप विशाल संघ पहुंचा पांच बजे वहां पर, भोजन करने बैठे पंडाल ११३ विभिन्न खाद्य पदार्थों से सामीवच्छल का लाभ लिया संघपति भंवरजी विनम्रभावे, सुखपृच्छा संभाल किया ११४
अनुकूल व्यवस्थायात्री संख्या सहस्र रही, शत उपर सेवक सेवारत बस ट्रक ठेला जलरंकी जीप, अनुकूल व्यवस्था सभी प्राप्त ११५ संघ सेवा समिति के सदस्य, सबही मंडल के अधिकारी प्रदत्तकार्य तम्मयता से संभाल रहे जिम्मेदारी ११६
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संघकी दिनचर्याजंगल में मंगल वर्ताता गतिशील संघ की दिनचर्या प्रातः सन्ध्या में प्रतिक्रमण, तपजप शक्ति अनुरुप किया ११७ करते विहार प्रतिदिन प्रातः छह बजे पूज्यश्री संघसाथ हाथी रथ घोडा उंट बैन्ड अनुपम छबी क्या कहुं नाथ ११८ प्रभुदर्शन मात्र पूजन करते, गुरुधंदन अरु व्याख्यान श्रवण दोनों टाइम अनुकुल भोजन, पश्चात् रात्रि में प्रभु भजन ११९ प्रश्नापुरुष आचार्य देव, जिनके बल पर था जोर शोर निर्णित क्षेत्र पावन करते दशवे दिन संघ पहुंचा साचोर १२० पांचसौ घर है जैनों के संघ स्वागत को वे बने तत्पर सामेला का भव्य आयोजन, नगर सजावट अति सुन्दर १२१ साचोर की दादावाड़ी में, पच्चीस हजार प्रदान किया बस्तीवालो को भोजन दे स्वधर्मी भक्ति का लाभ लिया १२२ पैदल यात्री संघकी महान, विशेषता ये रही हरदम जिन गांवों में विश्राम लिया, दिया प्रामीण को पूरा भोजन १२३
गुरुदेव संघ से पृथक् हुए (भूल भूलैय्यामें) प्रतिदिन यात्राक्रम हैजारी, त्रयोदशी बुध को पहुंचा थराद गुरुको विश्राम था ढीमामें, भोरोल होके जाना था बाव १२४ थराद से आगे बढ़कर के, ढीमा में यात्री विश्राम किये गुरुदेव भूलतः मार्ग दूसरे, सीधे बाव में पहुंच गये १२५
मणिभक्तिमणिप्रभ मुनिजी थे कुछ पीछे, गुरुदेव साथ होने को बढे दूरी में भी जब दिखे नही, सोचे यह राह गलत पकडे १२६
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१४
मैं बव रास्ते चल भूल किया, गुरुदेव चले ढीमा पथपर यह सोच पुनः लोटे सत्वर, पहुंचे ढीमा नहीं थे गुरुवर १२५
अलबिना मीन ज्युं तड़फ उठे, उस दिनका मार्मिक वर्णन है अनन्य प्रेम गुरुभक्ति ही, सचमुच मणि जीवन धड़कन है १२५ आते ही लौटने लगे पुनः, मध्यान्ह ताप था अतिकड़ा तृतीय प्रहर पश्चक्खाण किये, गुरु दर्शन प्रण था बडा १२९ सभी लोगो ने बहुत कहा रुकना होगा ना जाओ आप मंदिर दर्शन के बहाने से चलते ही बने जा पहुंचे बाव १३०
करुण दृश्य
श्रद्धेय दर्श पदस्पर्शन करके बोतक हाल सुनाया सभी रंगीन पंडाल भी फिका पड़ा, बसन्त विरान हुआ है अभी १३१ पलभर रुकना मुझे कठिन लगा, सभी कैसे दिवस बितायेंगे यहां पहुचेंगे तीन दिन बाद सारे ही मुरझा जायेंगे १३२ सरल स्वभावी गुरुदेव यू सहज भाव से कहने लगे कैलाशसागरजी साथ ही है वे सारा कार्य संभालेंगे १३३ सूर्य ग्रहण में जाप ध्यान करने को मुझे मिला अवकाश स्वर्णाक्षर अंकित निज विचार, भेजा मंगलमय हो प्रवास १३४ ढीमास्थित चतुर्विध संघ में, विषाद बादली छाई गहन साध्वीजी प्रेषित निम्न लिखित पत्र में है सारा वर्णन १३५
माक्षर लिखित हृदय स्पर्शी पत्र
पूज्यपाद श्री गुरुदेव के पावन पदपद्मे शतशः सश्रद्ध वन्दन स्वीकृत हो. पृच्छा करती शाता बहुश: १३६ ज्ञात नही अद्य कैसा सूर्य उदित हुआ तिमिर वर्धक प्रकाश पुंज के दर्शन से वंचित रहा संघ दर्शक १३७
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अब तक प्रतीक्षारत हम सब बैठे थे पलक विछाये संध्या तक जरुर पधारेंगे, गुरुवर यह आश लगाये १३८ राठीजी द्वारा प्राप्त पत्र पढ़ धर्य बांध टूटा है निराश खिन्नमन हुए सभी, हमसे ही दैव रुठा है १३९ हृदयस्थ गुरुदेव ! गौर करे, ग्रहण तो आते रहेंगे जप जाप तो खूब किया है और भविष्य में भी करेंगे १४० फिलहाल आपका प्रमुख कार्य है एक संघ का संचालन क्या!शोभेगासंघ आपबिना, नही होता शून्य का मूल्यांकन १४१ बेमिशाल व्यक्तित्व तेरा, लाखों व्यक्तित्व समाया है क्या अधिक निवेदन करे आपसे, क्यों हमको विसराया है १४२ प्रफुल्लित मुख विकृत है बना. सब दिखते यहां उदास चन्द घन्टों की यह हालत करेंगे आप विश्वास १५३ सर्वोपरि आपकी आशा, निर्णय मान्य ही होता है किन्तु अभी अरदास हमारी मान्य करे दिल रोता है १४४ अगर पधारे नही शाम तक तो यह प्रण भी है निर्णित नही करेंगे गोचरी कोई, शशी विकास हेमा निश्चित १४५ आप पधारे छोटे बापजी भी तो छोड़ के चले गए अकेले कैलाश मुनिजी क्या करे उदास भए १४६ भक्तितार से जुड़ा कनेक्शन, सुन लेना अन्तर आवाज आत्मा हो सन्तुष्ट सभीकी, पधारो संघ सरताज १४७ हेमाक्षर दिव्य विकाश शशि भावों को ना ठुकराना आधारस्तंभ हो इस संघ के, शीघ्रातिशीघ्र चले आना १४८
पदार्पणसंप्राप्त पत्र पढ़कर के पुन: निज विचारो ने मोड़ लिया प्रातः विहार किया पूज्यवर. भोरोल में संघको दर्श दिया १४९
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नवजीवन संचार हुआ, गुरुदेव पदार्पण से संघ में सूर्य विकासी संघ कमल. विकसित प्रमुदित हर्षित मनमें १
शंखेश्वरसकुशल संघ पैदल चलते, फाल्गुन तेरस को शंखेश्वर फाल्गुन चौमासी पर्वपुनीत, दर्शन संप्राप्त पार्श्व प्रभुवर १५ शंखेश्वर तीर्थ की पवित्र धरा संघ रुका दिन चार जहां दर्शन पूजन हुए भक्तिमग्न, ऐसा स्वर्णिम अवसर कहां १५ आगे पहुंचे जब मांडल में, भव्य समारोह था स्वागतका गुजरात प्रान्तकी गौशाला में, दूसरा स्थान रहा जिसका १५ धंधुका नगरी प्रवेश हुआ, हर्षोल्लास सामैय्या साथ बावीस साध्वीजी यहां मिले, गुरुदेव जन्मभूमि विख्यात १५ प्रमुखाचार्य यशोभद्रसूरि है, नेमिसूरि समुदाय में इस संघ में सामील हुए थे, वे बरवाला गांव में १५ वल्लभीपुरी वांधना से, ऐतिहासिक नगरी धन्य है। पुस्तकारुढ़ सिद्धान्त किए गए महिमा जिसकी अनन्य है १५ देवर्द्धिक्षमाश्रमणजी से पंचशत शिष्य वांचना लेते साकार दृश्य अति सुन्दर है, हम मुग्ध बने देखते १५ वल्लभीपुर सिहोर गांगली आदि विभिन्न स्थानो में पुनीत संघ प्रयाण हुआ सन्मान सभी ग्रामों में १५
संघस्थ मुनिवन्द प्रकाशस्तंभवत् मार्ग प्रदर्शक, पूज्यवर कान्तिसागरजी महासंघ में जो सम्मिलित रहे. प्रस्तुत नाम पूज्य मुनिवरजी १५ अतिवृद्ध मुनि साम्यानंदजी और कल्याणसागरजी महाराज मार संभाल करे संघकी प्रतिदिन कैलाशसागर मुनिराज १६॥
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प्रेरक सन्देश रहा जिनका, वे थे जयानन्द मुनिवरजी .. प्रतिपल सन्निकट पूज्यवरके, शोभित थे मणिप्रभसागरजी १६१ है बुद्धि प्रखर गुरु निर्देशन से सारा कार्य संभाल रहे अल्पवयी मुक्तिप्रभजी का हर पल उनको ख्याल रहे १६२ कुशल सुयश विमलप्रभजी, भक्ति अध्ययनरत सारे सेवाभावी महिमाप्रभजी, गुरु महिमा गाते हर्षा रे १६३ ललित नवीन चन्दप्रभजी है, पूज्येश्वर की छत्रछाया तेरह ठाणा मुनिराज साथ संघ सकल मन हर्षाया १६४
साध्वी मंडल
संघस्थ साध्वीजी मंडल का, प्रमुख नाम दर्शित है यहां विद्वानश्रीजी मनोहर मंडल, विकसित विकासश्रीजी है जहां १६५ अकलश्रीजी और विदुषीरत्ना दिव्यप्रभाश्रीजी आए सेवाभावी कोमलश्रीजी, शशिप्रभाजी रश्मि फैलाए १६६ मदनश्रीजी आदि सबही साध्वीजी ठाणाथी चालीस तीनठाणा अंचलगच्छकी दो ठाणा कृपाचंद ईश १६७ महासंघ के आधारस्तंभ ! विशिष्ट प्रमुख संघपति
___भंवरलालजी बोहरा संघपति भंवरजी बोहरा का तो पुण्य निराला है पुण्यानुबंधी पुण्य का बंधन, खुला तिजोरी ताला है १६८ चित्तउदार गुरुभक्ति का रंग प्रगाढ है छाया सोने में सुहागा, भंवर जीवन चमकाया १६९ संपत्ति का सद्व्यय करके दो दो उपधान कराया कान्ति गुरुवर निश्रामें तन मन धन कृत्य बनाया १७०
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१८
धन्य धरा धन्य जननी, परिवार धन्य सारा है धन्य धन्य भंवर जीवन, लाखों से स्तुत्य प्यारा है १७६ गुरुदेव कृपादृष्टि में सदा भीगा रहता है तुम्हारा मन श्रद्धावनत गुरु पदधूली, गा करके महक उठा है चमन १७० सिद्धक्षेत्र की सभा स्वयं उद्यत है तेरे स्वागत को संघपति जयध्वनि प्रसारित, उर्ध्व मध्य स्तुत्य आगत को १७३ महासंघ के पुनीतप्राण, युग युग जीवों सभी गाये कर्तव्य महक पद अमर बनेगा, किन शब्दों में बधाये १७४ संघपतियों की नामावलि
उदारवृत्त का परिचय दे, महासंघ में स्थान जो पाये निम्नोक्त नाम संघपतियों के, उनका भी शान बढ़ाये १७५
कमलसिंहजी दुधेड़िया, निवास स्थान कलकत्ता है रत्नत्रयी के आराधक, जिनवाणी पर ही श्रद्धा है १७६ छाजेड़ गोत्रीय संघपतिजी बाडमेर के निवासी है जीवणमलजी' अरु लुणकरणजी, गुरुदर्शन अभिलाषी है १७७ बाडमेर स्थित राठीजी, धर्मानुरागी द्वारकादास ४ पूज्यवर के प्रेरक प्रवचन से कर पाये जीवन विकास १७८ खरतरगच्छीय महासंघ अध्यक्ष जवाहरजी" राक्यान दिल्ली मणिधारी छाया में, जैन एकता पर है ध्यान १७९ बाडमेर के पुरुषोत्तमजी, माहेश्वरी गुरुभक्त बने अजैन है जिन अनुरागी, ऋषभ द्वार माल पहने १८१ पाली के श्रेष्ठी लोढ़ाजी, सोहनराजजी " श्रद्धावान मानव जीवन की सार्थकता, हेतु द्रव्य किया बलिदान १८०
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मुक्तिमाल पहननेका महत्व मेहताजीने जाना इन्दौरवासी कुन्दनमलजी सम्यग्भावों की सराहना १८२ देवगुरु की भक्ति ही नाहटाजी के मन भाया है मिश्रीलालजी शाहदा से संघ लेकर के आया है १८३ चंचल लक्ष्मी स्थिर बन जाती जिस घट में धर्मका वास धर्मप्रेमी जेठमलजी० गोलच्छा रहते है मद्रास १८४ बाडमेर निवासी तीनों का है भंवरलालजी नाम गोत्र बोथरा सेठिया, डोसी, चल आए सिद्धाचल धाम १८५ समृद्धि से पुण्यवृद्धि कर जीवन सफल बनाया है नारायणजी'४ सिन्धी बाडमेर, तीर्थ महिमा गाया है १८६ उपर्युक्त भव्यात्माओं ने संघपति पद प्राप्त किया आचार्यश्री की निश्रा में संघसह सिद्धाचल यात्रा किया १८७
___ संघ के पुनीत चरण गुजरात में दत्तकुशल गुरुदेव कृपा से आनंद मंगल वर्तित है नई चेतना पुनीत प्रेरणा, गुजराती संघमें वर्धित है १८८ महासंघ की महिमा और कान्ति गुरुदेव के समन्वय से गुजरात की जनता नत मस्तक हो भक्ति किया सहृदय से १८९ सानन्द लक्ष्य की ओर चरण, बढ़ रहा संघका श्रेयस्कर । धर्म जागृति करता हुआ, प्रकाशपुंज खरतर भास्कर १९० अद्वितीय संघ निजि विशेषता से श्रद्धा का केन्द्र बना लाखों लाखों जन स्तुत्य अवनि अम्बर परिवात बना १९१ चौपन दिवसीय यात्रा क्रम में, नितनए रंग उत्साह उमंग प्रसन्नवदन यात्रीजनका, सहृदय प्रेम सत्कार दंग १९२
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मन मोहक सुन्दर मेलाका,धन्य दिवस निकट अब आने लगा महासंघ का स्वागत करने सभी लोगों का भाव जगा १९३ सिद्धगिरिवासी सभी कौमो ने करदी तैयारी प्रारम्भ अभूतपूर्व हो स्वागत जिसे देख पाए दर्शक अचम्म १९४ ग्यारह किलो मीटर में, आए हजारो नर नारी स्वागतार्थ गुरुदेव संघके मनमें प्रसन्नता भारी १९५
गुरुकुल मेंस्वर्णिम सूर्योदय आज हुआ, धन्य दिन है प्रतीक्षित मनोहारा पालीताणा यशोविजय गुरुकुलमें, संघ विराजित शनिवारा १९६ गुरुकुल प्रांगण में ठाठ रहा, विभिन्न कार्यक्रम से उसदिन गुरुपूजन संघपूजन प्रसंगानुरुप पूज्यवर उद्बोधन १९७ विभिन्न प्रान्त देशभरके हजारो जैन बन्धु आए बस कारों की कतार लगी शासन शोभा को बढ़ाए १९८ विस्तृत प्रांगण संकीर्ण बना, जन समूह के आगमन से । साधर्मी वात्सल्य उपरान्त रात्रि आनन्द प्रवर्धित गायन से १९९ बाड़मेर आहोर और मद्रास मंडल की गीत कला प्रभु भक्ति में मस्त बने, विभिन्न वाद्य बजे तबला २००
ऐतिहासिक प्रवेश चैत्री शुक्ला शुभ दिन सातम, इतिहास समृद्ध बनाया है शासन सरताज कान्तिसारजी, पैदलयात्री संघ लाया है २०१ ऐतिहासिक प्रवेश महोत्सव की पुनीत घडियामन भावन है प्राची ने लाली बिखरायी अद्य उषा धन्य पावन है २०२ लाखों भक्तो के अंतर में, आनन्द उर्मियां उछल रही अलकापुरी सम सजित नगरी मन ही मन मचल रही २०३
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महासंघ स्वागत में अनेको स्वागत द्वार सजाये गये ध्वजा पताका तोरण आदि दर्शनीय बंधवाये गये २०४ वैभव समृद्ध अनोखीशान, स्वागत की शब्दातीत रही भारी संख्या में उपस्थिति सभी कौमों की सस्मित रही २०५ हर्ष हार माला का सर्जन, आनन्द की अवधि है कहां प्रसन्नता का क्या! पारावार, अद्वितीय संघ प्रवेश जहां २०६ सोनेरी उषा सर्व प्रथम संघ दर्शन करके धन्य बनी गुरुकुल से प्रस्थित प्रातः में अतिभव्य जुलूस दर्शनीय मणि २०७ पबनवेग से लहराता अति उच्च इन्द्रध्वज सर्व प्रथम बाडमेर के ऊंट हाथी रथ घोडे शोभित है अनुक्रम २०८ भावनगर और बीजापुर की बैण्डपार्टी भी थी अनुपम गगनभेदी मधुर स्वर लहरी सुनने को लालायित मन २०९ विभिन्नप्रान्त की भजन मंडली नृत्य गीत में लीन बने आगन्तुक दर्शनार्थी जन संघ यात्रीगण क्रमबद्ध बने २१० संघयात्रा के नायक दृढ़संकल्पी कान्तिसागर गुरुवर शिष्यवृन्द सहशोभ रहे ज्यु तारों में निशाकर २११ निश्राप्राप्त सस्मितवदन साध्वीजी का विशाल समूह एकसौ आठ कलश को लिये महिलाए मंगल वांच्छि ग्रह २१२ भव्य रजत रथ शोभित प्रभुजी, अमाप मेदिनी मानव की जय जय हो महासंघ संघपति निश्रादाता गुरुदेव की २१३ सभी गच्छ समुदाय शिरोमणि गणिवर्य मुनि आर्याजी प्रवेश जुलूस में सम्मिलित हो एकत्व भाव दर्शायाजी २१४ मुथ्य मार्ग पर नाच रहा उत्साह स्वतंत्र आज बनकर स्वागत कर रहे सहर्ष सभी, जाति संस्था जैन जैनेतर २१५
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बारी गली चौक कहीं भी दिखता खाली स्थान नही भारी भीड़ दर्शक की नजरें ढूंढे प्रश्न विराम कहीं २१६ चौपन दिवसीय पदयात्रा के यात्रिक संघपति कैसे ! निश्रादाता गुरुदेव श्री के दर्शनकर दर्शक हर्षे २१७ मनमोहक भव्य विराट जुलूस, जब प्रमुख मार्ग मध्य आया पुष्पवृष्टि की अपूर्व शोभा, स्वागत शान को बढ़ाया २१८ प्रमुख अतिथि मणिलालजी महासंघपति का सत्कार भावभरा अभिनन्दन करके पहनाया सुन्दर पुष्पहार २१९ महाकौशल मूर्तिपूजक संघ ने भी पुष्प वर्षाये महावीर सिक्का श्रीफल और हार मेटकर हर्षाये २२० भक्त हृदय की मंगल भावना गुरु चरणों में बहने लगी कलात्मक गहुंली ढेर जहां मनको आकर्षित करने लगी २२१ विधिपूर्वक वंदनकर भक्ति से श्रद्धा सुमन चढाया परमोपकारी पूज्य गुरुदेव को, अक्षत से बधाया २२२ जयध्वनि से नभ गूंज उठा, आदर्श अनोखा दृष्यमान नजरे जो टिकी फिर हट नसकी लाखों जिह्वा से स्तुत्यवान २२३ पादलिप्तपुरी का वैभवमय स्वागत और हार्दिक सन्मान कान्तिपूर्ण महासंघ समर्पित, भक्ति भाव अपूर्व महान २२४ हाथी के हौदे पर बैठे ताराचंदभाई रेवाबहिन नकदी रुपयो का निछरावल जुलूस किया उदारमन २२५ तीर्थाधिराज सिद्धाचलस्वामी, आदीश्वर प्रभु की जयकार निश्रादाता महासंघ प्राण गुरुवर असीम तेरा उपकार २२६ कर्णप्रिय नारो की झड़ी कोई गाने लगे गुणगान कड़ी स्पन्दित प्राण हुए सभी के रोम राजी साड़ातीन कोड़ी २२७
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आनन्द विभोर बनी है जहां, अथक अमाप उत्साह रहा हर्षसागर में डुबकी लगाकर ऐतिहासिक यात्रा प्रवाह बहा २२८ स्वयंसेवक सुन्दर ढंग से, व्यवस्थित जुलूस बनाये रखे अभूतपूर्व कान्ति मनोहर स्मृतिपट अंकित जीवन्त बने २२९ अब विराम का प्रथम स्थान माधोलाल में सुमति जिनालय कान्ति स्वर में प्रभु स्तुति पश्चात प्रदक्षिणा तीन वलय २३० चैत्यवंदन विधि दर्शन करके चले गुरु स्थल हरिविहार स्वर्गस्थ हरि गुरुवर सन्मुख भेट कान्ति श्रद्धा का हार २३१ हरिसागरसूरि ज्ञानमंदिर में नूतन निर्मित हाल का द्वारोद्घाटन किया केवलचंदजी खटोड मद्रास का २३२ हरि विहार शान मन्दिर में जुलूस सभा का रुप लिया सचोट प्रवक्ता आचार्यप्रवर की वाणी ने मंत्रमुग्ध किया २३३ महत्व है क्या!संघयात्राका, सामाजिक धार्मिक आध्यात्मिक संक्षिप्त विवेचन सुन्दरतम, सिद्धगिरि के परमाणु सात्विक २३४ महासंघपति भंवरलालजी सर्वोच्च बोली में लाभ लिया श्री जिनहरिसागरजी की मूर्तिको विराजमान किया २३५ मुख्य अतिथि तथा संघपतियों का हुआ सन्मानजी संघशिरोमणि पूज्यवरको चादर ओढाये राक्यानजी २३६ सभा विसर्जन पूर्व किया गया घोषित निर्णित कार्यक्रम गाम धुआड़ा बन्द आज है फले चुनड़ी का आयोजन २३७ धर्मनिष्ठ मणिलालजी डोसी, समाजसेवी उदारमना फले चुनड़ी का लाभ लिया है संघ स्वागतार्थ कृत पुण्यघणा २३८ दोपहर में संघ की बैठक सन्मान समारोह रात्रि में सभा विसर्जित हुई स्वयं सेवक जुटे है खात्रि में २३९
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मिलापचन्दजी गोलेच्छाजी निष्टातः कार्यमग्न बने सराहनीय सहयोग दिया है सहर्ष श्री हीराभाई ने २४० अविरत परिश्रम के कारण आयोजन सब सफल रहे सहयोगी काकुभाई ओर बालुभाई उस वक्त रहे २४१ सफल आयोजन फले चुनड़ी का जनजन में चर्चित है। महापुरुषों की शक्ति में ही ये विराट् कार्य संभवत है २४२ गुरु गौतम की लब्धि निधि दादागुरुदत्त कुशल कर्ता गौरवमयी परंपरा हरि की विस्तृत रश्मि कान्ति वरता २४३ तृतीय प्रहर शान मंदिर खरतर गच्छीय सम्मेलन राक्यानजी की अध्यक्षता में महासंघ विचार मिलन २५४ अध्यक्ष महोदय ने महासंघ के उद्देश्य को बतलाया संगठन में सहयोग अपेक्षित युगकी मांग समझाया २४५ शिक्षासमिति रिपोर्ट को किया आतमजी ने प्रस्तुत पारसमलजी के विचारों में दर्शित गुरुभक्ति का पुट २४६ कुशल जन्म शताब्दी आगामी फाल्गुन में मनाने को मार्गदर्शन सहयोग देंगे अपने गढ़सिवाना को २४७ बाडमेर कलकत्ता बालाघाट बड़ोदरा वासी आगन्तुक गणमान्य जनो ने समयोचित भाव प्रकाशी २४८ छत्तीसगढ़ मनोहरश्रीजी का सुन्दर आह्वान रहा तन मन धन से गुरु भक्ति में जुट जाए यह सारा जहां २४९ विदुषी साध्वी हेमप्रभाश्रीजी का प्रेरक उद्बोधन अतीत पृष्ठ खरतरगच्छ की वर्तमान स्थिति का शोधन २५० मणिलालजी ने बतलाये प्रगति स्थाई कोष की रकम बढ़ाई कई लोगों ने वर्धित राशि उद्घोष की २५१
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खरतरगच्छ महासंघ उपवन, सर्जन में सहयोग करे आश्वासन के साथ जयध्वनि गूजित हुई विराम घरे २५२
रात्रि में अभिनन्दन समारोह सुशोभित और परम पवित्र, पालीताणा का हरि विहार रंग बिरंगे ध्वजा पताका से दर्शनीय स्वागत द्वार २५३ प्रशंसनीय रोशनी विद्युत की माला पहन किया शृंगार राजमहल की तरह दीपता, प्यारा प्यारा हरि विहार २५४ निशा ज्योतिर्मय शान मन्दिर अभिनन्दन कार्य प्रारंभ हुआ पूज्य प्रवर गणमान्य अन्य सभी योग्यस्थान को प्राप्त किया २५५ समारोह अध्यक्ष कमिश्वर मेहता देवेन्द्रराजजी थे। मुख्य अतिथि चीफइन्जिनियर जैन दुर्गादासजी थे २५६ सर्व प्रथम मंगल प्रार्थना लघुमुनिवृन्द ने फरमाया स्वागतगान की मधुरध्वनि विशाल हाल को गुंजाया २५७ महासंघ के प्रेरक नायक प्राण तुम्ही कान्ति प्यारे खरतरगच्छ महासंघ दिशादर्शक अभिनन्दन स्वीकारे २५८ अखिल भारतीय जैन संघ को गुरुवर तुमपे नाज है अनुमोदन कर रहे हृदय से जैन संघकी आवाज है २५९
महासंघपति भंवरलालजी बोहराका अभिनन्दन जिनके सन्मुख सर्व प्रथम यात्रा का भाव दर्शाया कान्ति विचार करने साकार दृढ़ संकल्प बनाया २६० अल्प समय में बृहत् कार्य को मूर्तरुप देने वाले महासंघपति सरल मनस्वी भंवर बोहराजी आले २६१ पुष्पहार द्वारा महासंघने बोहराजी का किया सन्मान महाकार्य स्मृति निम्न लिखित अमिनन्दनपत्र किया प्रदान २६२
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अभिनन्दन पत्र प्रशापुरुष कान्ति गुरुवरजी वरदहस्त है सुखकारी महासंघ के कीर्तिस्तंभ भंवरजी बोहरा संस्कारी २६३ जिन शासन कृत सेवा महान, अमूल्य सदा अनुकरणीय समाजरत्न कर अर्णित है प्रशस्तिपत्र यह संस्तवनीय २६४ हे दानवीर ! दिलदरिया में विस्तृत महासंघ समाया है तन मन धन सब कुछ अर्पित कर जैन धर्मकी शान बढाया है २६५ महासंघपति पद भूषित हुए उपधान पतिजी हमारे मरुधर भूमि बाडमेर क्षेत्र के तुम उज्ज्वल नक्षत्र प्यारे २६६ गुरुभक्त प्रवर तव श्रद्धा केन्द्र है युगप्रधान गुरुदेवा खरतरगच्छ सरताज कान्तिसागरजी पदरज सेवा २६७ श्रद्धा सुमन सुवासित हृदयवाटिका की दर्शन छटा आस्था रुप प्रगाढ रंग गुरु कृपा दृष्टि की छाई घटा २६८ भक्तितार झंकृत है स्वतः और मनमयूर भी नाच उठा अश्रुवारि सिंचित भंवरबाग दृश्य कान्ति अनूठा २६९ भाव समर्पण है सराहनीय शब्दमणि गुरुवर अनमोल देव गुरु धर्म सेवा में द्रव्य खर्च किया दिल खोल २७० हरि बिहार निर्माण कार्य में आर्थिक योग दिया भारी नाकोड़ातीर्थ अभूतपूर्व उपधान कराया दो वारी २७१ व्यक्तित्व प्रखर कर्तृत्व सफल, भारत गौरव को बढाये विदेशो में स्थान मिला उद्योग प्रसिद्ध पाये २७२ धार्मिक सामाजिक व्यवहारिक बिभिन्न क्षेत्रो को संभाले श्री प्रसन्नता स्वउदारता से सबको खुश कर डाले २७३
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है शब्दकोष सीमित असीम कृति को दर्शाना शक्य नही मानवता के मधुर संगायक भंवरजी स्वागत अद्य यही २७४ जैन संघ प्रेषित शुभेच्छा तुम जीवों वर्ष हजार हार्दिक अनुमोदन अभिनन्दन कर लेना स्वीकार २७५
डोसीजी का स्वागत फले चुनड़ी का आयोजन करने वाले दिल्लीवासी प्रसिद्ध समाज सेवी उदात्तमन है मणिलालजी डोसी २७६ संघपति पद प्राप्त किया जैनेतर जैन पन्द्रह व्यक्ति परिचय पूर्व में दिया गया संघपति जीवन अभिव्यक्ति २७७ उपरोक्त नामी भव्यात्माओं का, भावभरा सन्मान हुआ खरतरगच्छ महासंघने पहले पुष्पहार प्रदान किया २७८ स्वागतकर्ता प्रमुख शहरो की नामावली प्रस्तुत है सराहनीय सत्कार समिति हरि विहार विश्रुत है २७९ अध्यक्ष चंपालालजी मंत्री पारख शान्तिलालजी कोषाध्यक्ष मुकनचंदजी, सेवारत भगवानदासजी २८० मद्रास जयपुर बडौदा बम्बई संघ प्रतिनिधि थे बलिहार अहमदाबाद बाड़मेर रायपुर आदि जगह से हुआ सत्कार २८१ अदम्य उत्साह तरंगो से वातावरण था अतिरम्य पदयात्रा समिति का स्वागत अनुपम और दर्शनीय २८२ अनुयोगाचार्य गुरुवरजीने नवनीत दिया जिनवाणी का सम्यग् श्रद्धा यदि नही उद्धार कहां फिर प्राणी का २८३ ड्राइवर डॉक्टर के उद्धरण दे बोले अटल विश्वास रहे देव गुरु धर्म में आस्था, जीवन्त जयतक श्वास रहे २८४
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२८ धर्म देशना बाद आपने मांगलिक फरमान किया तीर्थपति जय ध्वनि प्रसारित हुई रात्रि विश्राम लिया २८५
शिखर यात्रा एवं संघमाल आज का चौपनवां दिन महासंघ यात्रा का प्राण था अष्टमी सोम मंगल प्रभात, सिद्धाचल का ध्यान था २८६ कैसी अनमोल है शिखर दर्श की प्रतीक्षित पावन घड़िया एक दृश्य पर्वत का देखा, खिलने लगी हृदय कलियां २८७ नयनो में झांखा निद्रा ने, मिला नही पर स्थान कही उत्तुंग शिखरस्थित आदिदेव में अर्पित प्राण वहीं २८८ बाजे गाजे संघ चतुर्विध, संघ शिरोमणि साथ में हरि विहार से तलहटी पहुंचे स्वर्ण अक्षत लिये हाथ में २८९ भक्तिपूर्ण हृदय से संघने गिरिराज को बचाया पावनरज सिद्धगिरि मस्तक घर, जन्म कृतार्थ मनाया २९० तलहटी चैत्यवंदन विधि करके, हषोलास सह गिरि चढे पावन पुनीत परमाणु स्पर्शतः, निर्मल भव्य भाव उमडे २९१ अष्टकर्म की काली घटाओं से आच्छादित है ये जीवन तारण तरण देव दर्शन से ही टूटेगा कर्म बन्धन २९२ जीवन के विश्राम मेरे तुम, शरणागत पे कृपा करना शून्य हृदय सर्जन होगा फिर बुझा दीप प्रदीप्त बना २९३ प्राण पंछी के भाव पंख प्रमु वन्दन सक्रिय मना अधूरे स्वा साकार करने आशश सूर्य प्रकाशी बना २९४ उचशिखर स्थित दूर होस्वामी! पर मुक्त हृदय के अतिसमीप भाव पगथिये चढके पहुंचे, स्वरतर वसही ढूंक करीब २९५
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खरतर गच्छ श्रृंगार हार है युग प्रधान दादा गुरुदेव श्री जिन दत कुशलसूरि चरण पादुका दर्श किया तदेव २९६ हृदयस्थित प्रत्यक्ष प्रभावी, विलपावर ये तुम्हारा हैं निर्विन यात्रा महासंघकी कुशल कृपा अनुसारा है २९७ खरतरवसहि गुरुवन्दन कर चैत्यवंदन किया नवट्क में आशा किरण की लाइट लेकर पहुंचे सभी मूलढूंक में २९८ दादा ऋषभ दरबार में मधुर उत्कंठा का पारणा चातक वारिद मिलन है साक्षात अपलक नयन बारणा २९९ माराधना कष्ट परिश्रम से अतितप्त ये मानस भूमि में प्रभु दर्शन वाणी को कई क्षण सूखा लिया गहरे जमी ने ३०० हर्षाश्रु की धारा बहचली, वाणी कुंठित हुई तदा पवन वेगतः ध्वनि प्रसारित जय आदिनाथ सर्वदा ३०१ अंतर्नाद सुवासित माला समर्पित चरणे आदीश्वर भावों के आवेग से स्वतः मुखरित हुआ भकामर ३०२ द्रव्य भाव विधि पूजन करके माला परिधान के लिये सभी बाह्य प्रांगण सुशोभित मंडल योग्य स्थान पा लिये तभी ३०३ स्मित रेखा बिखरी चेहरों पर निश्च्छल नयन निहार रहे कृतार्थता का परम गान सह मुक्ति माल बलिहार है ३०४ धार्मिक उपकरण लिये संधपति हुए मालारोहण अभिमुख क्रिया का प्रारंभ किया पूज्येश्वर प्रतिमा सन्मुख ३०५ भाग्यशाली कलकत्तावासी कमलसिंहजी दुधेडिया प्रथम माल पहनने का सौभाग्य जिन्होने प्राप्त किया ३०६ विधि सहित इन्द्रमाल सभी संघपतियों ने पहना सप्रेम पुनीत तिथि की यादी में यथाशक्य लिया व्रत नेम ३०७
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संघमाल गिरिराज की यात्रा में अपूर्व दादा गुरुदेव की पूजा में भक्तिरस धार हर्षपूर्ण पूर्णाहुति के पश्चात सभी नीचे आए आयोजित स्वधर्मी भक्ति व्यवस्थित अनुकुलतार ३०९ फिल्म दिखाई गई रात्रि में हरि बिहार के हाल में मणिधारीजी अष्टम शताब्दि उत्सव आया ख्याल में ३१०
बिदाई
आनन्द रहा अखंड बहा ३०८
सद्गुण माला संघ विशाला, आकर्षक जादु डाला उज्ज्वल पृष्ठ निर्मित इतिहास की जड़ित शब्द मणि माला ३११ अमरगान का दृश्य आखिरी विदाई की तैय्यारी सावन भादो की वर्षा से भीगा मधुर हृदय क्यारी ३१२ नवपल्लवित संघ उपवन स्मृति दीप कभी ना बुझ पाये M नियमाबद्ध हुए नरनारी, अनुमोदन कर हर्षाये ३१३ संघयात्री सेवाभावी जन सामान्य सेवक वर्ग सभी यथायोग्य सन्मान सभी का महासंघ ने किया तभी ३१४ प्रसन्नता और विरह दग्धता दोनो अनुभव साथ लिये मंगलवाणी गुरु मुख से सुन यात्रीगण प्रस्थान किये ३१५ महासंघ निश्राप्रदाता पू. गुरुदेव अनुयोगाचार्यजी म. सा. की संक्षिप्त जीवनी
महासंघ निथादाता गुरुदेव जीवन परिचय प्रेषित जन्मभूमि राजस्थान रतनगढ़ उन्नीस सौ अड़सठ संवत ३२६ एकादशी माघकृष्णा सोहनदेवी मन हर्षाया सिंधी मुक्तिमलजी कुलदीपक जन्मोत्सव मनाया २१७
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होनहार के शुभ लक्षण दर्शित थे बाल्यावय से ही वैराग्यरंग भीगा जीवन भौतिक व्यामोह में फंसा नही २१८ खरतरगच्छाचार्य हरिसागर सूरिश्वर पद अनुरागी अल्पवय में दीक्षा लेकर तेजस्वी बाल बना त्यागी ३१९ कान्तिसागरजी नामकरण हुआ ज्ञानार्जन में हुए तल्लीन तीव्र बुद्धितः अल्पसमय में विभिन्न विषय में हुए प्रवीण ३२० गुरुपद सेवा शासन प्रभावना में सदैव प्रवृत्त रहे बीकानेर में मासक्षमण तप करके भी अप्रमत्त रहे ३२१ राजस्थान लोहावट में शान भंडार किया व्यवस्थित हरि गुरुवर की छाया में कान्ति सश्रद्ध थे समर्पित ३२२ उपधानतप संपन्न कराया संचेतीजी द्वारा आयोजित दो हजार पांच में हुवे अनुयोगाचार्यपद से विभूषित २२३ पायधुनि स्थल दो हजार छै कठोर वज्राघात हुआ परम आराध्य हरिसागरसूरिश्वरजीका स्वर्गवास हुआ ३२४ टूटे दिल पर बोझ पड़ा सक्षम हो कर्तव्य वहन किया मेड़तारोड में आपने पुज्य हरि चरणपादुका स्थापित किया ३२५ भारत के हर प्रान्त में विचरण करके किया धर्म प्रचार मधुर प्रखर प्रेरक प्रवचन से मुग्ध बनी जनता दरबार ३२६ विभिन विषय पर कई क्षेत्रों में पब्लिक प्रवचन सहन हुए पञ्चीस हजार प्रति प्रवचन में सुन सर्व आकृष्ट हुए ३२७ जगह जगह मन्दिर की प्रतिष्ठा उद्यापन संपन्न किये आर्वी भांदक गंटुर में उपधान आयोजन सफल किये ३२८ जेसलमेर यात्रार्थ पधारे पैदल यात्री संघ लेकर कापरड़ा केशरीयाजी संघ साथ पधारे थे गुरुवर ३२९
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तीर्थ नाकोडाजी में गुरुवर छै उपधान कराये है बाडमेर संघ में नई जागृति आप ही लाये है ३३० दो हजार छब्बीस में आपने कलकत्ता चौमासा किये अपार हर्ष सागर की तरंगे परिलक्षित इक व्यास लिये ३३१ मधुर कर्णप्रिय देशना सुनने को लालायित मन अमाप मेदनी मानवकी, एकाग्र हो सुनते प्रवचन ३३२ तन मन धन से श्रुत भक्ति कर भगवती सूत्र बहराया श्रीसंघ के सन्मुख गुरुवरने भगवती सूत्र सुनाया ३३३ सहज सरस शालिन्य सरलता भाषा अनुपम थी प्यारी मर्मस्पर्शी प्रतिवादन शैली, विद् चकित हुवे भारी ३३४ पर्युषण में धूम मची तपस्या का पारावार नही स्वधर्मी भक्ति जुलूस पूजा प्रभावना की भरमार रही ३३५ ग्यारह हजार की बोली लेकर पूज्य लुंचित केश झेले गुरु भक्त श्री परीचन्दजी सेवा में सदा रहे पहले ३३६ एकसौ सोलह तपस्वीजन का सामुहिक सन्मान हुआ अष्ट तपस्वी मासक्षमण के स्वर्णहार प्रदान किया ३३७ तपस्वीजन के स्वागत में कई प्रभावनाओं का ढेर जहां सुनहरा मन भावन अनुपम आयोजन दर्शनीय रहा ३३८ पुण्यभूमि शिखरजी की और गुरुदेव की निश्रा में उपधानतप करवाने का निर्णय लिया श्रीसंघने २३९ अवर्णनीय उपकार कभी कलकत्ता संघ न भूलेगा प्रसन्नवदन उदार हृदयी की पुनीत स्मृति में झलेगा ३४० चातुर्मास समाप्ति के उपरान्त पधारे शिखरजी भव्य आराधना उपधान की करवाये कान्ति गुरुवरजी ३४१
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यथासमय अनुकूल व्यबस्था तपस्वीजनों की भक्ति में निर्विघ्न संपन्न आयोजन गुरुदेव की पावन शाक्ति से ३४२ एक लाख एकावन हजार में प्रथम माल बोली लेकर रतनचंदजी मोघा ने लाभ लिया गुरु भक्त प्रवर ३४३ संवत दो हजार सत्ताइस आप पधारे दिल्ली जी अष्टम शताब्दि महोत्सव मणिधारी दादा गुरुवर की ३४४ वृहत् समारोह आपकी निश्रामें सानन्द संपन्न हुआ आपकी संचालन क्षमता ने पूर्ण श्रेय संप्राप्त किया ३४५ दो हजार तीस आसाड़ी कृष्णा सप्तमी दिन प्यारा बालमुनि मणिप्रभसागरजी ने संयमपथ स्वीकारा ३४६ पञ्चीस सौ वी निर्वाणतिथि उत्सव पूर्वक मनाने को महावीर निर्वाण भूमि पावापुरी दर्शन पाने को ३४७ उग्र विहारी पहुंच समयपर सारा कार्य संभाला सर्व संप्रदायों से समन्वयता का भाव विशाला ३४८ शान्ति से सहयोग प्राप्त कर, उत्सव को चमकाये राजनैतिक और पारस्परिक सारे उलझन सुलझाये ३४९ जैन जगत के उज्ज्वल नक्षत्र ज्योतिर्मय गुरु प्यारे युगो युगों तक मार्ग प्रशस्त तुम करते रहो हमारे ३५०
एक समीक्षा वर्तमान युग कायाकल्प किया एक सामयिक संकल्प ने आराधना का भाव जगाया, चौपन दिवसीय महासंघ ने ३५२ संघयात्रा की समीक्षा में इतना ही कहना बस होगा धर्मकार्य के साहस में यह नवीन दिशादर्शक होगा ३५२
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________________ 34 राष्ट्रवादी समाजवादियों की नजरों को खोल रहा धर्मवादी अनादि कालिन परम्परा को बोल रहा 353 जैनेतर के जीवन मे भी जैनत्व का संस्कार चढ़ा तीन संघपति है अजैन भी पदयात्रा का भाव उमड़ा 354 प्रभावक परिचय जिन पथ का लाखों लोगोंने जाना पुनीत संघ यात्रा कीये अमर गाथा हरदम माना 355 आर्यत्व का संस्कार जगाने मंगल घंट बजाया है जन से जिनपद पाने का पावन संदेश सुनाया है 356 समापन प्रातः स्मरणीय पूज्येश्वर का प्रेरक आशीर्वाद मिला आपके शिष्य पूज्य मणिप्रभजी से अनुभव वर्षात मिला 357 मनोहर अभिव्यक्ति महासंघकी सश्रद्ध समर्पित स्वीकारे दो हजार सैतीस शुक्ल चैत्री सातम दिन रविवारे 358 ऐतिहासिक विराट् आयोजन निर्विघ्न संपन्न भया कान्ति गुरुवर की क्रान्ति से प्यारा खरतर चमक गया 359 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com