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होनहार के शुभ लक्षण दर्शित थे बाल्यावय से ही वैराग्यरंग भीगा जीवन भौतिक व्यामोह में फंसा नही २१८ खरतरगच्छाचार्य हरिसागर सूरिश्वर पद अनुरागी अल्पवय में दीक्षा लेकर तेजस्वी बाल बना त्यागी ३१९ कान्तिसागरजी नामकरण हुआ ज्ञानार्जन में हुए तल्लीन तीव्र बुद्धितः अल्पसमय में विभिन्न विषय में हुए प्रवीण ३२० गुरुपद सेवा शासन प्रभावना में सदैव प्रवृत्त रहे बीकानेर में मासक्षमण तप करके भी अप्रमत्त रहे ३२१ राजस्थान लोहावट में शान भंडार किया व्यवस्थित हरि गुरुवर की छाया में कान्ति सश्रद्ध थे समर्पित ३२२ उपधानतप संपन्न कराया संचेतीजी द्वारा आयोजित दो हजार पांच में हुवे अनुयोगाचार्यपद से विभूषित २२३ पायधुनि स्थल दो हजार छै कठोर वज्राघात हुआ परम आराध्य हरिसागरसूरिश्वरजीका स्वर्गवास हुआ ३२४ टूटे दिल पर बोझ पड़ा सक्षम हो कर्तव्य वहन किया मेड़तारोड में आपने पुज्य हरि चरणपादुका स्थापित किया ३२५ भारत के हर प्रान्त में विचरण करके किया धर्म प्रचार मधुर प्रखर प्रेरक प्रवचन से मुग्ध बनी जनता दरबार ३२६ विभिन विषय पर कई क्षेत्रों में पब्लिक प्रवचन सहन हुए पञ्चीस हजार प्रति प्रवचन में सुन सर्व आकृष्ट हुए ३२७ जगह जगह मन्दिर की प्रतिष्ठा उद्यापन संपन्न किये आर्वी भांदक गंटुर में उपधान आयोजन सफल किये ३२८ जेसलमेर यात्रार्थ पधारे पैदल यात्री संघ लेकर कापरड़ा केशरीयाजी संघ साथ पधारे थे गुरुवर ३२९
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