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तीर्थ नाकोडाजी में गुरुवर छै उपधान कराये है बाडमेर संघ में नई जागृति आप ही लाये है ३३० दो हजार छब्बीस में आपने कलकत्ता चौमासा किये अपार हर्ष सागर की तरंगे परिलक्षित इक व्यास लिये ३३१ मधुर कर्णप्रिय देशना सुनने को लालायित मन अमाप मेदनी मानवकी, एकाग्र हो सुनते प्रवचन ३३२ तन मन धन से श्रुत भक्ति कर भगवती सूत्र बहराया श्रीसंघ के सन्मुख गुरुवरने भगवती सूत्र सुनाया ३३३ सहज सरस शालिन्य सरलता भाषा अनुपम थी प्यारी मर्मस्पर्शी प्रतिवादन शैली, विद् चकित हुवे भारी ३३४ पर्युषण में धूम मची तपस्या का पारावार नही स्वधर्मी भक्ति जुलूस पूजा प्रभावना की भरमार रही ३३५ ग्यारह हजार की बोली लेकर पूज्य लुंचित केश झेले गुरु भक्त श्री परीचन्दजी सेवा में सदा रहे पहले ३३६ एकसौ सोलह तपस्वीजन का सामुहिक सन्मान हुआ अष्ट तपस्वी मासक्षमण के स्वर्णहार प्रदान किया ३३७ तपस्वीजन के स्वागत में कई प्रभावनाओं का ढेर जहां सुनहरा मन भावन अनुपम आयोजन दर्शनीय रहा ३३८ पुण्यभूमि शिखरजी की और गुरुदेव की निश्रा में उपधानतप करवाने का निर्णय लिया श्रीसंघने २३९ अवर्णनीय उपकार कभी कलकत्ता संघ न भूलेगा प्रसन्नवदन उदार हृदयी की पुनीत स्मृति में झलेगा ३४० चातुर्मास समाप्ति के उपरान्त पधारे शिखरजी भव्य आराधना उपधान की करवाये कान्ति गुरुवरजी ३४१
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