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मार्ग में आये बरवाला नगर में पू. नेमिसरिजी म के समुदाय के वयोवृद्ध आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी म., जो संघ प्रेरणा दाता गुरुदेव के अनन्य प्रेमी है, बिराजमान थे। समन्वयता के प्रतीक गुरुदेव श्रीने संघ में पधारने की विनंती की जिसे स्वीकार कर आचार्य श्रीने सम्मिलित होकर अपने अक्य स्वभाव को उद्घोषित कर दिया।
पालीताणा महातीर्थ पर भव्य प्रवेश प्रातःकालकी सुरीली हवा के मध्य सुरीले वाद्ययंत्रों की झनझनाहट ने प्रत्येक मानव को पालीताणा स्टेशन के समीप यशोविजय जैन गुरुकुल की ओर जो आकर्षित कर दिया।
सूर्योदय के कुछ ही क्षणों के पश्चात् जुलूस के रूप में मानव मेदिनी चल पडी। सबसे आगे काष्ठ का हाथी था, उसके पीछे इन्द्रध्वजा, अपनी ध्वजा फहराती हुई संघ प्रवेश को उद्घोषित कर रही थी। उसके पीछे घोडे, ऊँट और बाद में स्थानिक बालाश्रम एवं गुरुकुल के ३०० बालक ३-३ की लाईनों में सुव्यवस्थित ढंग से कदम मिलाते हुए बढ रहे थे। उसके बाद स्थानिक बेंड ओर तत्पश्चात् जन-२ को अपनी ओर आकर्षित करता हुआ हाथी अपनी मस्त चाल से गतिमान था। उसके पीछे अहमदाबाद का प्रसिद्ध जीया बेंड अपनी भक्ति धुनों से भक्ति-रसिक मानव मन को भक्ति से ओत-प्रोत कर रहा था। ओर उनके बाद ८ फुट ऊची विशाल डोली में विराजमान, हजारों मनुष्यों के केन्द्र बिन्दु, पूज्य गुरुदेव, श्रमण शिरोमणि, जैन जगत के प्रकाश स्तंभ, नई चेतना के ऊर्धारोहक-प्रेरणा स्रोत सीमाओं से परे विशाल व्यक्तित्ववान् समन्वयता के प्रतीक प्रज्ञा
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