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छत्तों पर देखों, जहाँ देखो वहाँ मानव ही मानव । शहर का चौडा पथ भी संकीर्ण बन गया था।
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पदार्पण पर मानव जिस प्रकार उलटता है उसी प्रकार पूज्य गुरुदेव एवं संघ के नगर प्रवेश को देखने मानव मेदिनी उलट पडी थी। स्थान-२ पर कृत गहुंलियों ने नगरकी धार्मिक प्रवृत्ति को उद्बोधित किया।
आणंदजी कल्याणजी की पेढी, मोतिसुखिया, ब्रह्मच. श्रिम, हरिविहार. माहेश्वरी समाज, मुस्लिम समाज, आदि पालीताणा इकाई की सभी जातियों ने संघपतियों को पुष्पहार पहनाकर हर्ष प्रकट किया। पुरनारियाँ स्थान-२ पर पुष्पवर्षा द्वारा स्वयं के उल्लासों को प्रकट कर रही थी। सबसे महत्त्वकी बात तो यह थी कि उस दिन कसाईओं ने स्वेच्छा से कसाईखाना बंद रखा, और जुलूस में भाग लेकर अपनी धार्मिक भावना का उद्बोधन किया।
माधवलाल जिनमंदिर के दर्शन के पश्चात् हरि विहार में पदार्पण हुआ। वहाँ नवनिर्मित जिन हरिसागरसूरि शानभंडार का उद्घाटन दानवीर श्री केवलचंदजी खटोड ने किया और मांगलिक प्रवचन के पश्चात् सभा विसर्जित की गई।
और उसी दिन फलेचुनडी का आयोजन हुआ, जिसका सारा श्रेय संघपति सेठ श्री मणिलालजी डोशी को है । जैसा आयोजन गत ३०० वर्षों में नहीं हुआ था। इस आयोजन में सक्रिय कार्य करनेवाले श्री मिलापचंदजी गोलेच्छा को अनेकश धन्यवाद है। और पालीताणा
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