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२८ धर्म देशना बाद आपने मांगलिक फरमान किया तीर्थपति जय ध्वनि प्रसारित हुई रात्रि विश्राम लिया २८५
शिखर यात्रा एवं संघमाल आज का चौपनवां दिन महासंघ यात्रा का प्राण था अष्टमी सोम मंगल प्रभात, सिद्धाचल का ध्यान था २८६ कैसी अनमोल है शिखर दर्श की प्रतीक्षित पावन घड़िया एक दृश्य पर्वत का देखा, खिलने लगी हृदय कलियां २८७ नयनो में झांखा निद्रा ने, मिला नही पर स्थान कही उत्तुंग शिखरस्थित आदिदेव में अर्पित प्राण वहीं २८८ बाजे गाजे संघ चतुर्विध, संघ शिरोमणि साथ में हरि विहार से तलहटी पहुंचे स्वर्ण अक्षत लिये हाथ में २८९ भक्तिपूर्ण हृदय से संघने गिरिराज को बचाया पावनरज सिद्धगिरि मस्तक घर, जन्म कृतार्थ मनाया २९० तलहटी चैत्यवंदन विधि करके, हषोलास सह गिरि चढे पावन पुनीत परमाणु स्पर्शतः, निर्मल भव्य भाव उमडे २९१ अष्टकर्म की काली घटाओं से आच्छादित है ये जीवन तारण तरण देव दर्शन से ही टूटेगा कर्म बन्धन २९२ जीवन के विश्राम मेरे तुम, शरणागत पे कृपा करना शून्य हृदय सर्जन होगा फिर बुझा दीप प्रदीप्त बना २९३ प्राण पंछी के भाव पंख प्रमु वन्दन सक्रिय मना अधूरे स्वा साकार करने आशश सूर्य प्रकाशी बना २९४ उचशिखर स्थित दूर होस्वामी! पर मुक्त हृदय के अतिसमीप भाव पगथिये चढके पहुंचे, स्वरतर वसही ढूंक करीब २९५
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