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मैं बव रास्ते चल भूल किया, गुरुदेव चले ढीमा पथपर यह सोच पुनः लोटे सत्वर, पहुंचे ढीमा नहीं थे गुरुवर १२५
अलबिना मीन ज्युं तड़फ उठे, उस दिनका मार्मिक वर्णन है अनन्य प्रेम गुरुभक्ति ही, सचमुच मणि जीवन धड़कन है १२५ आते ही लौटने लगे पुनः, मध्यान्ह ताप था अतिकड़ा तृतीय प्रहर पश्चक्खाण किये, गुरु दर्शन प्रण था बडा १२९ सभी लोगो ने बहुत कहा रुकना होगा ना जाओ आप मंदिर दर्शन के बहाने से चलते ही बने जा पहुंचे बाव १३०
करुण दृश्य
श्रद्धेय दर्श पदस्पर्शन करके बोतक हाल सुनाया सभी रंगीन पंडाल भी फिका पड़ा, बसन्त विरान हुआ है अभी १३१ पलभर रुकना मुझे कठिन लगा, सभी कैसे दिवस बितायेंगे यहां पहुचेंगे तीन दिन बाद सारे ही मुरझा जायेंगे १३२ सरल स्वभावी गुरुदेव यू सहज भाव से कहने लगे कैलाशसागरजी साथ ही है वे सारा कार्य संभालेंगे १३३ सूर्य ग्रहण में जाप ध्यान करने को मुझे मिला अवकाश स्वर्णाक्षर अंकित निज विचार, भेजा मंगलमय हो प्रवास १३४ ढीमास्थित चतुर्विध संघ में, विषाद बादली छाई गहन साध्वीजी प्रेषित निम्न लिखित पत्र में है सारा वर्णन १३५
माक्षर लिखित हृदय स्पर्शी पत्र
पूज्यपाद श्री गुरुदेव के पावन पदपद्मे शतशः सश्रद्ध वन्दन स्वीकृत हो. पृच्छा करती शाता बहुश: १३६ ज्ञात नही अद्य कैसा सूर्य उदित हुआ तिमिर वर्धक प्रकाश पुंज के दर्शन से वंचित रहा संघ दर्शक १३७
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