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शासनसम्राट की छाया में तप जप का ठाठ लगा भारी पौष शुक्ल दिन एकादशी, दो हजार छत्तीस सुखकारी ८७) मनोहर माला परिधान दृश्य, हजारों नेत्र निहार रहे गुरुवर उपकार महान किया, नतमस्तक हो माटूजी कहे ८८ उपधान समाप्ति पर गुरुवर, नाकोड़ा से बिहार किया अतिशीघ्र वाडमेर जा पहुंचे, अव द्वितीय भाग प्रारंभ हुआ ८९
द्वितीय भाग
नामाक्षर पद्यावलीकाली घटा में विद्युत से तुम चमक उठे इस कलियुग में न्याति नोहरा प्रस्थित पैदल संघप्राण! नमन तव पदयुग्मे ९० तिर्थाधिराज गिरि प्रांगण में, शोमे हरि पटाधीश गुरुवर वासर भानु निशा शशिवत् , खरतर सम्राट हे ज्योतिर्धर! ९१ सागरसम हृदय विशाल उदात्त विचार विश्व फैली ख्याती गच्छाधिपति भाषाधिकार, प्रवचन शैली मन को भाती ९२ रग रग में समायी गुरुभक्ति, समर्पण भाव साकार किया जीवनस्मृति रहे गुरुदेव की, हरि विहार निर्माण किया ९३ मनोहर परिकर मध्य कान्ति, परिधि में शिष्य शोभित है हारपदक मणि दीप्तिवन्त, मोतीसा मुक्ति प्रबोधित है ९४ राजमार्ग दर्शक प्रबुद्ध, प्रभु महावीर पथ अनुगामी जग उद्धारक मम श्रद्धास्पद, त्रुटि को क्षमा करे स्वामी ९५ सादर अभिनन्दन है हार्दिक व्यक्तित्व अनूठा बेमिशाल मनोहर मंडल हर्षित गुरुवर, समीप पहुंचे अस्सीकी साल ९६
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