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यथासमय अनुकूल व्यबस्था तपस्वीजनों की भक्ति में निर्विघ्न संपन्न आयोजन गुरुदेव की पावन शाक्ति से ३४२ एक लाख एकावन हजार में प्रथम माल बोली लेकर रतनचंदजी मोघा ने लाभ लिया गुरु भक्त प्रवर ३४३ संवत दो हजार सत्ताइस आप पधारे दिल्ली जी अष्टम शताब्दि महोत्सव मणिधारी दादा गुरुवर की ३४४ वृहत् समारोह आपकी निश्रामें सानन्द संपन्न हुआ आपकी संचालन क्षमता ने पूर्ण श्रेय संप्राप्त किया ३४५ दो हजार तीस आसाड़ी कृष्णा सप्तमी दिन प्यारा बालमुनि मणिप्रभसागरजी ने संयमपथ स्वीकारा ३४६ पञ्चीस सौ वी निर्वाणतिथि उत्सव पूर्वक मनाने को महावीर निर्वाण भूमि पावापुरी दर्शन पाने को ३४७ उग्र विहारी पहुंच समयपर सारा कार्य संभाला सर्व संप्रदायों से समन्वयता का भाव विशाला ३४८ शान्ति से सहयोग प्राप्त कर, उत्सव को चमकाये राजनैतिक और पारस्परिक सारे उलझन सुलझाये ३४९ जैन जगत के उज्ज्वल नक्षत्र ज्योतिर्मय गुरु प्यारे युगो युगों तक मार्ग प्रशस्त तुम करते रहो हमारे ३५०
एक समीक्षा वर्तमान युग कायाकल्प किया एक सामयिक संकल्प ने आराधना का भाव जगाया, चौपन दिवसीय महासंघ ने ३५२ संघयात्रा की समीक्षा में इतना ही कहना बस होगा धर्मकार्य के साहस में यह नवीन दिशादर्शक होगा ३५२
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