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गाथा-७१
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प्रवचनसार गाथा-७१ ६९ और ७०वीं गाथा में शुभभाव से इन्द्रियसुखों की प्राप्ति होती है - यह कहने के उपरान्त इस ७१वीं गाथा में यह बताते हैं कि शुभोपयोग के फल में प्राप्त होनेवाली देवगति में भी स्वाभाविक सुख नहीं है। गाथा मूलत: इसप्रकार है - सोक्खं सहावसिद्धं णत्थि सुराणं पि सिद्धमुवदेसे । ते देहवेदणट्ठा रमंति विसएसु रम्मेसु ।।७१।।
(हरिगीत) उपदेश से है सिद्ध देवों के नहीं है स्वभावसुख ।
तनवेदना से दुखी वे रमणीक विषयों में रमे ।।७१।। जिनेन्द्रदेव के उपदेश से यह सिद्ध है कि देवों के भी स्वभावसिद्ध सुख नहीं है; क्योंकि वे पंचेन्द्रियमय देह की वेदना से पीड़ित होने से रमणीक विषयों में रमते हैं।
तात्पर्य यह है कि यदि वे स्वाभाविक सुखी होते, दुखी नहीं होते; तो रमणीक विषयों में रमण संभव नहीं था । रमणीक विषयों में रमण इस बात का प्रमाण है कि देव भी दुःखी ही हैं।
उक्त गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं___ “इन्द्रियसुखभाजनों में देवगति के देव प्रधान हैं; वस्तुतः उनके भी स्वाभाविक सुख नहीं है; अपितु उनके स्वाभाविक दुख ही देखा जाता है; क्योंकि पंचेन्द्रियात्मक शरीररूपी पिशाच की पीड़ा से परवश होने से वे भृगुप्रपात के समान मनोज्ञ विषयों की ओर दौड़ते हैं।"
भृगु माने पर्वत का निराधार उच्च शिखर और प्रपात माने गिरना। इसप्रकार भृगुप्रपात का अर्थ होता दुखों से घबड़ा कर आत्महत्या करने
के लिए पर्वत के निराधार उच्च शिखर से गिरना। इसप्रकार देव भी पंचेन्द्रिय विषयों की अभिलाषा की पीड़ा सहन न कर पाने से भृगुप्रपात के समान इन्द्रिय विषयों की ओर दौड़ते हैं। तात्पर्य यह है कि सुखी से दिखनेवाले देव भी वस्तुत: दुखी ही हैं। __आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति में उक्त गाथा के भाव को निम्नांकित प्रसिद्ध उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करते हैं -
एक व्यक्ति अतिविस्तीर्ण भयंकर वन में भ्रमित होकर अर्द्धविक्षिप्त हाथी के पीछे पड़ जाने से अंधे कुएँ में गिरते समय उसके किनारे पर स्थित वृक्ष की एक शाखा को पकड़ कर लटक जाता है।
उक्त वृक्ष की जड़ों को दो चूहे काट रहे हैं। उस वृक्ष पर एक मधुमक्खियों का छत्ता लगा है और उस वृक्ष को वह विक्षिप्त हाथी क्रोधित होकर झकझोर
रहा है। जिसके कारण मधुमक्खियाँ उड़कर उक्त पुरुष को काटने लगी हैं; पर छत्ते के हिलने से उसमें से मधु (शहद) की एक-एक बूंद टपक रही है; जो भाग्य से शाखा से लटके उक्त पुरुष के मुख में गिर रही है; जिसे वह बड़े चाव से चाट रहा है।
नीचे कुएँ में विशाल अजगर पड़ा है;