Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ (१०) पूमनपाठ, शास्त्रश्रवण तथा स्वाध्याय व्रतादि भी यथाशक्ति करते हैं। आपकी मातानी भी बड़ी धर्मात्मा हैं। क्यों न हो, जिनके पुत्रादि इस प्रकार के सजन हों उस माताका क्या कहना ? वीर निर्वाण संवत् २४४८ में जैनधर्मभूषण' ब्रह्मचारी श्री शीतलप्रसादनी महाराज जब कलकत्तेमें चातुर्मास (वर्षाकाल) विता रहे थे उस समय ब्रह्मचारीजीने जो यह टीका लिखी थी उसको प्रकाशन तथा "जैनमित्र के ग्राहकों को वितरण करनेके लिये श्रीयुत चंडीपसादनीसे आदेश किया कि आप अपने स्वर्गीय पिताकी स्मृति स्वरूप यह श्री जिनवाणी रक्षा तथा धर्म प्रसादका कार्यकर लेवें । तव मापने तत्क्षण ब्रह्मचारीनीकी पाज्ञाको शिरो. धार्य किया और यह अंथ-रल आन पाठकोंके कर-कमलों में धर्मपथ प्रदर्शनार्थ इन्हीं भाइयोंकी सहायतासे सुशोभित हो रहा है । परिवर्तनरूप संसारमें इसी प्रकारका दान साथ देता है। हां, इतना अवश्य है कि इस प्रकार शुभ और धार्मिक कार्योंमें उन्हीका द्रव्य लग सकता है जिनका द्रव्य अहिंसा और सत्य व्यापारसे उपार्जित हो। ____ भगवान् श्री जिनेन्द्र देवसे प्रार्थना है कि आप दोनों भाइयोंको चिरायु प्राप्त हो तथा मापके धार्मिक विचार दिनोंदिन उन्नति करें। स जातो येन जातेन, याति वंशः समुन्नतिम् परिवर्तिनि संसारे, मृतः को'वा न जायते ॥ विनीत-गैटेलाल जैन,-कलंकत्ता।

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