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श्रीमवचनसार भापाटीका। [१३ सुविदिदपदत्यनुत्तो,संजमतवसंजुदो विगदागो समणो समहदुक्खो, भणिो सुद्धोध
ओगोत्ति ॥१४॥ सुविदितपदार्थसूत्रः संयमतपः संयुतो विगतरागः । श्रमणः समसुखदुःखो भणिश: शुद्धोपयोग इति ॥ १४ ॥ .
सामान्यार्थ-जिसने भले प्रकार पदार्थ और उनके बतानेवाले सूत्रों को जाना है, जो संयम और तपसे संयुक्त है, वीतराग है और दुःख सुखमें समता रखनेवाला है सो सानु शुद्धोपयोगी कहा गया है। ___अन्वय सहित विशेषार्थ-( सुविदिदपदत्थसुत्तों) भले प्रकार पदार्थ और सूत्रोंको नाननेवाला, अर्थात् संशय शिोह विभ्रम रहित होकर निसने अपने शुद्धात्मा गादि पदार्थोंको और उनके बतानेवाले सूत्रोंको जाना है और उनकी रुचि प्राप्त की है, (संनमतबसंजुदो ) संयम और तप संयुक्त है अर्थात नो बाह्यमें द्रव्येद्रियोंसे उपयोग हटाते हुए और पृथ्वी आदि छः कामोंकी रक्षा करते हुए तथा अंतरंगमें अपने शुद्ध आत्माके अनुभवके वलसे अपने स्वरूपमें संयम रूप ठहरे हुए हैं तथा बाह्य व अंत. रंग बारह प्रकार तपके बळसे काम क्रोध आदि शत्रुओंसे मिनका. प्रताप खंडित नहीं होता है और जो अपने सुख मात्मामें कम रहे हैं; नो ( विगदरागो) वीतराग हैं अर्थात् वीतराग शुद्ध आत्माकी भावनाके वलसे सर्व रागादि दोपोंसे रहित हैं (सममुह दुक्खो ) सुख दुःखमें समान हैं अर्थात् विकार रहित और विकल्प रहित समाधिसे उत्पन्न तथा परमानन्द सुखरसमें लपलीन ऐसी