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श्रीचनमा
परिणमनशक्ति काम करती मालूम
प्रत्यक्ष दिखने योग्य कायोंमें पड़ती है तब अति सूक्ष्म शुद्ध द्रव्योंमें परिणमनशक्ति न रहे तथा वे परिणमन न करें यह बात असंभव है । इसीसे मिद्धोंमें भी पर्यायका उत्पाद और विनाश मानना होगा । वृत्तिकारने तीन तरह उत्पाद व्यय बताया है। एक तो अगुरुलघु गुणक द्वारा, दूसरा परकी अपेक्षा से जैसे ज्ञानमें जैसे ज्ञेय परिणमन करके इल-कते हैं वैसे ज्ञानमें परिणमन होता है, तीसरे विद्ध अवस्थाका उत्पाद पूर्व पर्यायका व्यय और आत्म द्रव्यका धौव्यपना । इनमें स्वाश्चित स्वभाव पर्यायोंका होना गुरुलघु गुणके द्वारा कहना वास्तविक स्व अपेक्षारूप है और ऐसा परिणमन शुद्ध आत्म द्रव्यमें सदा रहता है। यहां गाथा पर्यायकी अपेक्षासे ही उत्पाद तथा व्यय. Eat at a storer कहने में उत्पाद व्यय अलग रह जाते हैं इससे किसा प्रत्यभिज्ञान के गोचर स्वभाव रूप पर्यायके द्वारा ही व्यपना है । द्रव्यार्थिक नयसे इन तीन रूप सत्ताको रखने वाला द्रव्य है । यदि पर्यायोंका पलटना सिद्धों में न मानें तो समय समय अनंत सुखका उपभोग सिन्होंके नहीं हो सकेगा। इस तरह सिद्ध जीव द्रव्यार्थिक नयसे नित्यपना होनेपर भी पर्यायकी अपेक्षा उत्पाद, व्यय और प्रौव्ययने को कहते हुए दूसरे स्थळमें दो गाथाएं पूर्ण हुई ।
भाषाका । [
6.6
'उत्थानिका- आगे कहते हैं कि जो पूर्व में कहे हुए सर्वज्ञको मानते हैं वे ही सम्यग्दृष्टी होते हैं और वे ही परम्परा मोक्षको प्राप्त करते हैं: --