Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 362
________________ . श्रीमवचनसार भाषाटीका । [३४३ भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने जिनवाणीके द्वारा जिन पदार्थों को जानना है उनकी व्यवस्थाका कुछ सार बताया है, अर्थ शब्दको द्रव्य, गुण, पर्याय तीनोंमें घटाया है । इयति इति अर्थः अर्थात् गुण पर्यायोंको आश्रय घरे व परिणमन करे वह अर्थ अर्थात द्रव्य है। इसी तरह इयरति इति अर्थाः जो द्रव्यको माश्रय करते हैं ऐसे गुण तथा द्रव्य भाधारमें परिणमन करनेवाकी पर्यायें अर्थ हैं। द्रव्य गुण पर्यायोंका सर्वस्व है या समु. दाय है । यह उपदेश श्री सर्वज्ञ भगवानका है। जैसे मिट्टी अपने चिकनेपने आदि गुणको व घड़े मनोरे प्याले मादि पर्यायको माश्रय करती है इससे मिट्टी अर्थ है, वैसे चिकनापना आदि गुण मिट्टीको आश्रय करते हैं इससे चिकनापना आदि गुण अर्थ हैं। इसी तरह घड़ा, सकोरा, मटकैना आदि पर्यायें मिट्टीको आश्रय करती हैं इसलिये ये घड़े मादि अर्थ हैं । मिट्टी अपने चिकनेपने भादि गुण व घढ़ा आदि पर्यायोंका माधार है या सर्वस्व है इस लिये मिट्टो द्रव्य है । मिट्टीमें जितने सहभाषी हैं वे गुण है और उन गुणोंमें जो समय समय सूक्ष्म या स्थूल परिणमन होता है वे पर्यायें हैं। जितनी पर्यायें मिट्टीके गुणोंमें होनी संभव हैं अर्थात् जितनी पर्यायें मिट्टी गुप्त हैं वे ही क्रमसे कभी कोई कमी कोई प्रगट होती रहती हैं। एक समयमें एक पर्याय रहेगी इसलिये पीयें क्रमवर्ती होती हैं। श्री उमास्वामी महाराजने भी तत्वार्थ सूत्रमें कहा है " गुणपर्ययबद्व्यम्" ॥ ॐ अर्थात् गुण पर्यायोंको आश्रय रखनेवाला द्रव्य है । गात्मा और अनात्मारूप छहों द्रव्योंमें अर्थपना और द्रव्यपना इसी तरह सिद्ध है । आत्माके ज्ञान सुख

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