Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 374
________________ wwwww __ श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । [३५६:. minim है-उस द्रव्य साधुसे धर्मका साधन संभव नहीं है.। ...... अन्वय सहित विशेषार्थ-(नो) जो कोई नीव (हि).. निश्चयसे (सामण्णे) द्रव्य रूपसे साधु अवस्थामें विराजमान होकर भी (सत्तासंबढेदे सविसेसे) महासत्ताके संबंधरूप सामान्य अस्तिस्व सहित तथा विशेष सत्ता या अवान्तर सत्ता या अपने स्वरूपकी सत्ता सहित विशेष अस्तित्व सहित इन पूर्वमें कहे हुए. शुद्ध जीव आदि पदार्थों को (ण सहदि) नहीं श्रद्धान करता है (सो सवणो ण) वह अपने शुद्ध आत्माकी रुचि रूप निश्चय सम्यग्दर्शनपूर्वक परम सामायिक संयम लक्षणको रखनेवाले साधुपनेके विना भावंसाधु नहीं है, इस तरह भावप्साधुपनेके अभावसे (तत्तो धम्मो ण संभवदि) उस पूर्वोक्त द्रव्यसाधुसे वीतराग शुद्धा. स्मानुभव लक्षणो धरनेवाला धर्म भी नहीं पालन हो सक्ता है यह सुत्रका अर्थ है। भावार्थ-यहां आचार्यने भावकी प्रधानतासे व्याख्यान किया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि यथायोग्य भावके विना साधुपना मोक्षका मार्ग नहीं है और न उससे मोक्ष ही प्राप्त हो सक्ता है । हरएक मनुष्यको नो धर्मपालन करना चाहे सम्यक्तकी आवश्यक्ता है । सम्यग्दर्शनने विना ज्ञान सम्यग्ज्ञान तथा चारित्र सम्यग्चारित्र नहीं होसका है । इसलिये लोकमें जिन छ द्रव्यों: का कथन श्री जिन आगममें बताया है उनका यथार्थ. श्रद्धान होना चाहिये । जगतमें पदार्थोकी सत्ता सामान्य विशेषरूप है। जैसे हाथी शब्दसे सामान्यपने सब हाथियोंका बोध, होता है परंतु विशेषपने प्रत्येक हाथोकी सत्ता भिन्न २ है। वृक्ष कहनेसे

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