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.४] श्रीमवचनसार भाषाटीकय . पदार्थों में उत्पाद व्यय प्रौव्य देखे जाते हैं वैसे ही अमृतीक सिन्ड स्वरूपमें भी जानना चाहिये क्योंकि सिद्ध भगवान भी पदार्थ हैं। उप्पादो य विणासो, विनदि सव्वस्स अत्यजादस्स। पजाएण दु केण वि अत्यो खलु होदि सम्भुदो॥१॥
उत्पादन विनाशो विद्यते सर्वस्याथजातस्य । पर्यायेण तु केनाप्यर्थः खलु मति सद्भूतः ॥ १८ ॥
सामान्यार्थ-किसी भी पर्यायकी अपेक्षा सर्व ही पदाथोमें उत्पाद तथा विनाश होते हैं तौमी पदार्थ निश्वयसे सत्तारूप रहता है। ____ अन्वय सहित विशेषार्थ-(केण दु पज्जाएण) किसी भी पर्यायसे भर्थात किसी भी विवक्षित अर्थ या अनन पर्यायसे अथवा स्वभाव या विमाव रूपसे (सव्वस्त मत्वनादरस) सर्व पदार्थ समूहके ( उप्पादो य विणासो ) उत्पाद और विनाश (विचदि ) होता है । ( अत्यो ) पदार्थ ( खलु ) निश्चय करके (सन्मदो होदि ) सत्तारूप, सत्तासे भिन्न है। प्रयोजन यह है कि सुवर्ण, गोरस, मिट्टी, पुरुष आदि मूर्ती पदार्थोमें जैसे उत्पाद व्यय ध्रौव्य हैं ऐसा लोकमें प्रसिद्ध है वैसे अमूर्तीक मुक्त जीवमें हैं। यद्यपि मुक्त होते हुए शुद्ध आत्माकी रुचि. उसीका ज्ञान तथा उसीका निश्चलतासे अनुभव इस रत्नत्रय मई लक्षणको रखनेवाले संसारके अंतमे होनेवाले कारण समयसार रूप भाव पर्यायका नाश होता है तैसे ही केवलज्ञानादिकी प्रगटता रूप कार्य समयसार रूप भाव पर्यायका उत्पाद होता है तो भी दोनों ही पर्यायोंमें परिणमन करनेवाले आत्म द्रव्यका प्रौव्यपना