________________
श्रीमवचनसार भाषाटीका ।
आमाकी शुद्ध परिणति होने में भी निमित्तकी आवश्यक्ता है उसकी तरफ लक्ष्य देकर आचार्य शुद्धोपयोग के लिये कौन२ निमित्तकी आवश्यक्ता है उसको कहते हुए शुद्धोपयोगी मानवका स्वरूप बताते हैं । सबसे पहला विशेषण यह दिया है कि उसको fatalite रहस्यका अच्छीतरह ज्ञान होना चाहिये। जिनशासनमें कथन निश्चय और व्यवहार नयके द्वारा इस लिये किया गया है कि जिससे अज्ञानी जोवको अपनी वर्तमान अवस्थाके होनेका कारण तथा उस अवस्थाके दूर होनेका उपाय विदित हो और यह भी खबर पड़े कि निश्चय नयसे वास्तवमें जीव और . अजीवा क्या २ स्वरूप है तथा शुद्ध मात्मा किसको कहते हैं । जिनशासन में छः द्रव्य, पंचास्तिकाय, सात तत्व, नौ पदाथका ज्ञान अच्छी तरह होनेकी जरूरत है जिससे कोई संशय शेष न रहे। जबतक यथार्थ स्वरूपका ज्ञान न होगा तबतक भेद विज्ञान नहीं होता है । भेदज्ञान विना स्वात्मानुभव व शुद्धोपयोग नहीं होता। इसलिये शास्त्र के रहस्यका ज्ञान प्रबल निमि
कारण है । दूसरा विशेषण यह बताया है कि उसे शुद्धात्मा आदि पदार्थों का ज्ञाता और श्रद्धावान होकर चारित्रवान भी होना चाहिये इसलिये कहा है कि वह संयमी हो और तपस्वी हो जिससे यह स्पष्टरूपसे प्रगट है कि वह महाव्रती साधु होना चाहिये क्योंकि पूर्ण इंद्रिय संयम तथा प्राण संयम इस ही अवस्थामें होता है । गृहस्थकी श्रावक अवस्थामें आरंभ परिग्रहका थोड़ा या बहुत सन्ध रहनेसे संयम एकदेश ही पळसक्ता हैं पूर्ण नहीं पलता है । संयमीके साथ २ तपस्वी भी हो । उप
1
[ ५५
AMAR