________________
Amrav
६०] श्रीप्रवचनसार भापाटीका । । अतीन्द्रिय ज्ञान तथा सुखके परिणमनके बाथनकी मुख्यतासे प्रथम गाथा है और केवलज्ञानीको भोजनका निराकरणको मुख्यतासे दूसरी गाथा है, इस तरह " पक्खीण घाइ कम्मो " को आदि लेकर दो गाथाए हैं । इस तरह दूसरे अन्तर अधिकारमें चार स्थलसे समुदाय पातनिका पूर्ण ।
मागे अब यह कहते हैं कि शुद्धोपयोगके लाभ होने के पीछे केवलज्ञान होता है । अथवा दुरी पातनिका यह है कि श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव संबोधन करते हैं कि, हे शिवकुमार महारान ! कोई भी निकट भव्य जीव जिसकी रुचि संक्षेपमें जाननेकी है पीठिकाके उनाख्यानको ही सुनकर आत्माका कार्य करने लगता है। दूसरा कोई नीव जिसकी रुचि विस्तारसे जानने की है इस बातको विचार करके कि शुद्धोपयोगके द्वारा सर्वज्ञपना होता है और तब अन्तज्ञान अनंतसुख आदि प्रगट होते हैं फिर अपने आत्माका उचार करता है इसीलिये अब विस्तारसे व्याख्यान करते हैंउवओगविसुद्धो जो, विगदाचरणंतरायमोहरभो भूदो सयमेवादा, जादि पर णेशमूदाणं ॥१९॥
उपयोगविशुद्धो यो विगतावरण तरायमोहराः । । भूतः स्वयमेवात्मा याति परं शेयभूतानाम् ॥ १५ ॥
सामान्यार्थ-जो शुद्धोपयोगके द्वारा निर्मल हो जाता . है. वह आगा ज्ञानावरम, दर्शनावरण, अतराय तथा मोह कर्मकी रजके चले मानेपर स्वयं ही सर्व क्षेत्र पदार्थोके संतको प्राप्त हो. जाता है अर्थात् सर्वज्ञ होजाता है