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FANAM
१०] , श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । विशुद्ध द्रव्य गुण पर्याय मई चैतन्य वस्तुमें जो रागद्वेष भादि विकल्पोंसे रहित निश्चल चित्तका वर्तना उसमें अंतर्भूत जो व्यवहार दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और.वीर्य सहकारी कारणसे उत्पन्न निश्चय पंचाचार उसमें परिणमन करनेसे यथार्थ पंचाचारको पालनेवाले (समणे) श्रमण शब्दसे वाच्य आचार्य, उपाध्याय और साधुओंको नमस्कार करता हूं।
भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने मनादि णमोकार मंत्रकी पूर्ति की है। इस पैतीस अक्षरी मंत्रमें मुक्तिके साधनमें आदर्श रूप सहकारी कारण ऐसें पांच परमेयिष्ठोंको स्मरण किया है। सम्पूर्ण जगत विषय कषायोंके वश होकर मोक्षमार्गकी चर्यासे बाहर हो रहा है। वास्तवमै सम्यग्वारित्र ही पूज्य है । जो संसारसे उदासीन होनाते हैं उनके ही चारित्रका पालन योग्यतासे होता है। मो इन्द्रियोंके सर्व विषयभोगोंसे रहित हो स्वममें भी इंद्रियों के विषयोंकी चाह नहीं करते हैं किन्तु केवल शरीरको स्थितिके लिये सरस नीरस जो भोजन गृहस्थ भावकने अपने कुटुम्बके लिये तय्यार किया है उसी से दिनमें एक दफे लेते हैं
और रात्रिदिन परम मात्माकी भावनामें तल्लीन रहते हैं जब ध्यान नहीं कर सकते तब स्वाध्याय करते हैं । जो महात्मा परम, दयावान हैं, बस स्थावर सर्व प्राणियों के रक्षक हैं। जिनके गृहस्थके वस्त्र तथा आभूषण अदिका त्याग है। ऐसे महान आत्माओंको अंतरात्मा यती कहते हैं। ये ही यती सम्यग्दर्शनकी दृढ़ताके लिये नित्य महंत, सिद्ध, भक्ति करते तथा स्तवन और वंदना इन दो मावश्यक कार्योको करते हैं। सम्यग्ज्ञानकी दृढ़ताके लिये