________________
जिनेश्वर देव की आराधना बताई गई है।
4. श्री भगवती सूत्र के प्रारम्भ में ज्ञान की स्थापना के रूप में श्री गणधर देवों ने श्री बंभी लिपि को नमस्कार किया है।
5. श्री दशकालिक सूत्र में स्त्री की प्रतिकृति भी देखने की साधु को मनाई कर स्थापना के शुभाशुभ प्रभाव को स्पष्टरूप से प्रतिपादित किया गया है।
6. श्री भगवती सूत्र के बीसवें शतक के नवे उद्देश में लब्धिधर चारणमुनियों द्वारा शाश्वत और अशाश्वत जिनप्रतिमाओं की, की हुई वन्दना का स्पष्ट उल्लेख हैं।
7. श्री समयायांग सूत्र में चारणमुनि श्री नन्दीश्वरद्वीप में चैत्यवन्दन के लिए जाते हैं तब सत्रह हजार योजन ऊर्ध्व गति करते हैं, इसका स्पष्ट वर्णन हैं।
प्रतिमा की पूजनीयता के प्रमाण श्री जिनप्रतिमा जिस प्रकार वन्दनीय है उसी प्रकार पूजनीय भी है। इसके लिए इन्हीं बत्तीस आगमों में निम्न प्रकार के प्रमाण मौजूद हैं :
1. श्री रायपसेणी सूत्र में श्री सूर्याभदेव द्वारा की हुई पूजा का विस्तृत वर्णन है। श्री सूर्याभ देवता परम सम्यग्दृष्टि, परित्तसंसारी, सुलभबोधि और परम आराधक हैं, ऐसा भगवान् ने स्वमुख से फरमाया है। - 2. श्री ज्ञाता सूत्र में भवनपति निकाय के देवियों की जिनभक्तिकी प्रशंसा की गई है।
3. श्री भगवती सूत्र में प्रभु के सामने इन्द्रादि द्वारा किये हुए नाटक की प्रशंसा
4. श्री जीयाभिगम सूत्र में श्री विजयदेव द्वारा किये गये नाटक की प्रशंसा है।
5. श्री ठाणांग सूत्र के चौथे स्थान में श्री नन्दीश्वर द्वीप पर कई देवी-देवताओं की पूजा भक्ति का वर्णन है।
6. श्री जंयुद्धीप प्रज्ञप्ति में श्री जिनेश्वरदेव की दाढ़ें और अस्थि, दंतादि प्रमुख अवयव, देवता भक्तिपूर्वक अपने स्थान पर ले जाकर पूजते हैं तथा अग्निदाह के स्थान पर प्रमुख स्तूप की रचना करते हैं, इसका स्पष्ट वर्णन हैं।
7. श्री भगवती सूत्र के दसवें शतक के छठे उद्देश में इन्द्र की सुधर्मसभा में श्री वीतराग की दाढ़ों की आशातना के वर्जन का वर्णन है।
___8. श्री दशकालिक सूत्र में देवताओं को मनुष्यों की अपेक्षा अधिक विवेकी बतलाया है तथा उन देवताओं के जीव पूर्वभव में तपस्या और श्रुत की आराधना करके
- 49