Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 141
________________ (10) श्री अभयदेवसूरिजी का कोढ़ श्री स्तम्भन पार्श्वनायजी की मूर्ति के स्नानजल से गया। उसके पश्चात् उन्होंने नव अंग सूत्रों की टीका रची। (11) श्री गौतम स्वामी की शंका निवारण करने के लिए भगवान ने श्रीमुख से फरमाया है कि- जो व्यक्ति आत्मलब्धि से श्री अष्टापद तीर्थ पर चढ कर भरत राजा द्वारा बनवाई हुई जिन प्रतिमाओं का भावपूर्वक दर्शन करेगा तो वह इसी भव में मोक्ष में जायेगा। इस बात का निश्चय करने के लिए, श्री गौतम स्वामी अष्टापद पर चढ़े तथा यात्रा करके उसी भव में मोक्ष गये, ऐसा पाठ श्री आवश्यक नियुक्ति में है। (12) श्री भगवती सूत्र के मूल पाठ में कहा है कि - भावपूर्वक श्री जिनमूर्ति का शरण लेने पर कभी नुकसान नहीं होता। (13) चौदह पूर्वघर श्री भद्रबाहुस्वामी श्री आवश्यक नियुक्ति' में फरमाते है कि - अकसिणवत्तमाणं, विरयविरथाणं एस खलु जुत्तो। संसारपथणुकरणे, दव्यत्यए कूयदिढ्तो ||1|| भावार्थ- देश-विरति श्रावक को पुष्पादि के द्वारा द्रव्यपूजा अवश्य करनी चाहिए। यह द्रव्यपूजा कुए के दृष्टांत से संसार को पतला करने वाली है। (14) टीकाकार भगवान श्री हरिभद्रसूरिजी ने श्री आवश्यकवृत्ति में ऐसा बताया है कि प्रभुपुजा पुण्य का अनुबन्ध करने वाली तथा बहु निर्जरा के फल को देने वाली ___(15) श्री अभयदेवसूरिजी ने पूजा के फल को बताते हुए कहा है कि यद्यपि श्री जिनपूजा में स्वरूपहिंसा दिखाई देती है, फिर भी वह पूजा करने से गृहस्थ (कुए के दृष्टांत से) शुद्ध होता है तथा परिणाम की निर्मलता के अनुक्रम से मुक्तिफल प्राप्त करता है। (16) गुणवर्मा राजा के सत्रह पुत्रों में से प्रत्येक ने भिन्नभिन्न प्रकार की पूजा की तथा वे उसी भव में मोक्ष गये, ऐसा सत्रह प्रकार की पूजा के चरित्र में कहा है। सत्रह प्रकार की पूजा का विस्तृत वर्णन श्री रायपसेणी सत्र में है। (17) श्री जिनप्रतिमा की पूजा, भक्ति करने से श्री शांतिनाथ स्वामी के जीव ने श्री तीर्थंकर गोत्र का बंध किया था, ऐसा प्रयमानुयोग सूत्र में कहा है। (18) श्री भगवती सूत्र में ऐसा कहा है कि तीर्थंकर का नाम तथा गोत्र सुनने से भी महापुण्य होता है, तो प्रतिमा में तो उनके नाम तथा स्थापना दोनों है, अत: उन दोनों की पूजा होने से विशेष पुण्य हो, इसमें क्या आश्चर्य! (19) श्री श्रेणिक राजा ने श्री जिनेश्वरदेव की प्रतिमा की आराधना से तीर्थंकर गोत्र बाँधा, ऐसा अधिकार 'योगशास्त्र' में है। - --134 134

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