Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 197
________________ चारण मुनि जिन प्रतिमा वंदे, भाखिऊं भगवई अंगे; चैत्य साखि आलोयण भाखे, व्यवहारे मन रंगे! कुमति! .4 प्रतिमा-नति फल काऊस्सग्गे आवश्यक मां भाख्युः चैत्य अर्थ वेयावच्च मुनि ने, दसने अंगे दाख्यं रे! कुमति! .5 सूरियाभ सूरि प्रतिमा पूजी, रायपसेणी माहि; समकित विणुं भवजलमां पड़ता, दया न साहे बाहि रे! कुमति! 06 द्रौपदीये जिन-प्रतिमा पूजी, छठे अंगे वाचे; तो सुं एक दया पोकारी, आणा विण तु माचे रे! कुमति! .7 एक जिन प्रतिमा वंदन द्वेषे, सूत्र घणां तु लोपे! नंदी मां जे आगम संख्या, आपमती का गोपे? कुमति! .8 जिनपूजा फलदानादिक सम, महानिशीये लहिये; अंध परंपर कुमतिवासना, तो किम मना वहिये रे? कुमति! .9 सिद्धारथ राय जिन पूज्या, कल्पसूत्रमा देखो आणा शुद्ध दया मन धरतां, मिले सूत्रनां लेखो रे! कुमति! .10 थावर हिंसा जिन- पूजामां, जो तुं देखी धूजे; तो पापी ते दूर देश थी, जे तुज आवी पूजे रे! कुमति! .11 -1901

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