Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 176
________________ सारा पाप आहार देने वाले को नहीं लगेगा? वस्त्र मलिन होता है, उसमें जूं आदि जीव पैदा हो सकती हैं, अतः साधु की यह सारी द्रव्यपूजा छोड़कर केवल भावपूजा ही क्यों न की जाय? यदि आप कहेंगे कि 'साधु को दान देने से तो एकान्ततः निर्जरा बताई गई है' - तो फिर “जिनमूर्ति की द्रव्यपूजा से कर्मबन्ध होता है', यह किस सूत्र में कहा है। पूजा में उपयोगी पुष्प आदि जीय तो मात्र एकेन्द्रिय अव्यक्त चैतन्यवाले हैं, उसमें यदि दोष बताते हो तो साधु को गर्म व मधुर भोजन बहोराते समय तो उठने-बैठने, जाने-आने की क्रिया में अनेक अस जीयों की भी हिंसा सम्भव है, फिर भी उसमें निर्जरा यतलाते हो - यह कहाँ का न्याय है? एकेन्द्रिय की हिंसा से बेइन्द्रिय की हिंसा में अधिक पाप है. . . इस प्रकार अनुक्रम से पंचेन्द्रिय की हिंसा में अनन्तगुणा पाप है... तो फिर सोचें - साधु को द्रव्य दान देने से ज्यादा पाप या तीर्थंकर की पूजा से अधिक पाप? जिस प्रकार साधु को दान देने का आदेश अनेक सूत्रों में है उसी प्रकार जिनेश्वर की द्रव्यपूजा का आदेश भी अनेक सूत्रों में है। जिस बात का निषेध न हो, उसका आदेश समझना चाहिए। जिस प्रकार गृहस्थ के लिए मुनिदान उचित है, उसी प्रकार द्रव्यपूजा भी उचित ही है। एक का आदर और दूसरे का अनादर करना - यह एकमात्र स्पष्ट पक्षपात ही है। क्योंकि सम्यक्त्व के आचरण में सुपात्रदान और जिनपूजा, इन दोनों कार्यों का समावेश होता है। यह भी सोचने योग्य है कि इच्छारहित को दान देना श्रेष्ठ है या इच्छावान् को? सकर्मी को दान देना विशेष योग्य है या अकर्मी अर्थात् कर्मरहित को दान देना विशेष योग्य है? सोचने पर पता चलेगा कि इच्छा वाले सकर्मी साधु की द्रव्यपूजा की अपेक्षा इच्छारहित और कर्ममल से सर्वथा मुक्त वीतरागदेव की द्रव्यपूजा करना विशेष फलदायी है। इस कारण श्री प्रश्नव्याकरण में द्रव्यपूजा को 'दया' शब्द से सम्बोधित किया है तथा आवश्यक सूत्र' में पुष्पादि से पूजा करने से संसार-क्षय का फल बतलाया है। प्रश्न 77 - श्री प्रश्नव्याकरण में दया के आठ नाम बतलाए हैं, उसमें पूजा को भी दया में गिना है तो फिर यहाँ भावपूजा क्यों नहीं समझना? उत्तर- भावपूजा क्या वस्तु है ? उसे बराबर समझना चाहिए। जिस समय द्रव्यपूजा की जाती है, उस समय मन में जो शुभपरिणाम उत्पन्न होते हैं, उसी का नाम भावपूजा है। द्रव्य के बिना किसी काल में भाव सम्भव नहीं है। . जैसे - रसोई की हो तभी आहार रूप द्रव्य से साधु को दान देने की भावना कर सकते हैं और उसी को भाव कहते हैं। केवल भावना कोई पदार्थ नहीं है। जो बारह भावनाएँ 169

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