Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 189
________________ मुक्तिपथप्रदर्शक हैं, भवोदधिनिर्यामक हैं, महागोप हैं। परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट मार्ग की आराधना से जीवात्मा इस दुःखमय संसार में भी सुख का अनुभव करता है। ऐसे अनन्तोपकारी परमात्मा के पूजन से हमें कृतज्ञता गुण की प्राप्ति होती है। 3. विनय- जिससे आठ प्रकार के कर्म दूर होते हैं, उसे जैनशासन में विनय कहते हैं। विनय सर्व गुणों का मूल है। विनयरहित दानादि सब निष्फल हैं। विनय से ज्ञान, दर्शन और चारित्र्य की प्राप्ति होती है। परमात्म-भक्ति यह सर्वश्रेष्ठ विनय है। जिनेश्वर की पूजा से नम्रता गुण का विकास होता है और हमें भी परमात्मा के गुणों की प्राप्ति होती है। हे परमात्मा! आप पूर्ण हो। आप सर्वज्ञ हो। आप वितराग हो। मैं अपूर्ण हूँ। मैं अज्ञानी हूँ। मैं रागी हूँ। आपकी शरण ही मुझे पूर्ण, ज्ञानी व वीतराग बनाएगी, इसी दृढ़ श्रद्धा से आपकी शरण में आया हूँ। हे प्रभो! माँ कष्टों को सह कर भी अपने पुत्र का रक्षण, पालन करती हैं। आप तो जगत् की माता हो, फिर मेरे जैसे बालक की आप उपेक्षा क्यों करते हो? हे प्रभो! मेरी आत्मा का निर्विकार स्वरूप होने पर भी ये वासनाएँ मुझे क्यों सताती हैं? यह समझ में नहीं आ रहा है। मुझे विश्वास है कि आपकी भक्ति ही मुझे वासना-मुक्त बनाएगी। 182

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