Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ हैं वे भी अमुक-अमुक द्रव्य पर आश्रित हैं। श्री जिनेश्वर के गुण की प्रशंसा करना स्तुति कहलाता है, पूजा नहीं और द्रव्यपूजा करने वाले की अनुमोदना करना वह भावपूजा है। __अगर कोई स्त्री रसोई की सामग्री तैयार किए बिना ही साधु को दूर से आते देख, दरवाजा बन्द कर झरोखे में बैठकर मन में भावना करे कि "साधु को आहार-पानी बहोराने से जीव की मुक्ति होती है।'' तो उसकी यह भावना सच्ची या झूठी? सार्थक या निरर्थक? द्रव्य पदार्थ रहित होने से वह भावना व्यर्थ है। जहाँ चित्त, वित्त और पात्र - इन तीनों का योग हो वहीं उत्तम लाभ सम्भव है। वित्त और पात्र रहित चित्त की शास्त्रकारों ने प्रशंसा नहीं की है क्योंकि अधिकांशतः वह दम्भ रूप बन जाती है। श्री आवश्यक सूत्र में 'लोगस्स' के पाठ में जो 'कित्तिय यंदिय महिया' पाठ आता है, उसमें 'कित्तिय' का अर्थ 'कीर्ति अथवा स्तुति की' और 'वंदिय' का अर्थ 'वंदना की' ये दो शब्द भावपूजावाचक हैं, परन्तु 'महिया' शब्द का अर्थ 'महिताः पुष्पादिभिः' अर्थात् पुष्पादिक से पूजा की' अर्थात् यह वचन द्रव्यपूजा आश्रित है - फिर भी कई लोग भावपूजा का झूठा अर्थ कर भ्रम में डालते हैं - वह असत्य है। किसी भी टीकाकार अथवा टबाकार ने केवल भावपूजा का अर्थ नहीं किया है, बल्कि भावपूजा और द्रव्यपूजा उभय अर्थ ही किया है। प्रश्न 78 - मूर्ति को स्नान ही कराना है तो फिर कच्चे (सचित्त) जल के यजाय अचित्त गुलायजल आदि से कराने में क्या नुकसान है? फलफूल के यदले कागज के फूल तथा इलायची, लोंग आदि अचित्त यस्तुओं का उपयोग करने में क्या तकलीफ है? उत्तर - भद्रिक आत्माओं को सन्मार्ग से भ्रष्ट करने के लिए यह एक कुटिल तर्क है। इस प्रकार का कुतर्क देने वाले इस तर्क का उपयोग अपने ही घर में क्यों नहीं करते हैं? अपने गुरु गोचरी के लिए आएँ तब उन्हें कागज तथा कपड़े की अचित्त रोटी बहोराएँ. . . गर्म पानी के बदले अचित्त गुलाबजल आदि दें और स्वयं एकासना-उपवास आदि करे तब कागज-कपड़े की रोटियाँ खाए व अचित्त गुला जल आदि पीए क्योंकि पानी गर्म करने से व रसोई करने से तो षट् जीवनिकाय की हिंसा होगी। ये सारे कुतर्क व्यर्थ हैं। पूजा की जो उचित पद्धति चली आ रही है उसे बदलने में भयंकर अनर्थ के सिवाय अन्य कुछ परिणाम नहीं है। कागज के फूल या गुलाब जल से पूजा या दान देने से आज्ञा-भंग का दोष तो लगता ही है परन्तु उसके सिवाय भी अनेक दोषों की परम्परा चालू हो जाती है। भक्ति के बदले केवल अभक्ति और आशातना ही होती है। जो मौज-शौक और सांसारिक कार्यप्रसंगों में फूलों के हार-गजरा आदि बनाकर -170

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208