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कोई बाधा नहीं आती है, वैसे स्थापना अरिहन्त को भी एक ही मकान में रहने में कोई बाधा नहीं आती है। जो बाधा है वह भाव अरिहन्त को ध्यान में रखकर बताई गई है।
प्रश्न 33 - स्या गुरु का चित्र देखकर शिष्य एवं पिता का चित्र देखकर पुत्र खड़ा होगा? आदर देगा? श्वसुर की तस्वीर देखकर पुत्रवधू चूंघट निकालेगी? यदि नहीं तो फिर मूर्ति को मानने का आग्रह किसलिए?
उत्तर- शिष्य अपने गुरु की तथा पुत्र अपने पिता की तस्वीर का आदर नहीं करेगा तो क्या अपमान करेगा? अथवा कोई शत्रु यदि उन तस्वीरों के मुख पर काजल पोतना चाहेगा तो क्या वे ऐसा करने देंगे? क्या वे इसको सहन करेंगे? अथवा तस्वीरों को केवल कागज तथा स्याही का रूप मानकर रास्ते में लोगों के पैरों तले कुचलने के लिए फेंक देंगे? ऐसे कार्य किसी ने किये नहीं और यदि कोई करता है तो वह विचारकों की दृष्टि में कपूत एवं हँसी का पात्र गिना जायेगा। इस प्रकार का आचरण साक्षात् गुरु और साक्षात् पिता का अपमान करने के तुल्य ही गिना जाता है। इसके विपरीत उन चित्रों को अनी फ्रेम में लगाकर मेज या सिंहासन पर ऊँचे स्थान पर रखें अथवा दीवार पर स्वच्छता से लगावें तो इसे गुरु अथवा पिता का आदर करना ही माना जायेगा तथा इसे देखकर अपने गुरु अथवा पिता की याद आये बिना भी नहीं रहेगी।
दूसरी बात - शिष्य अथवा पुत्र, गुरु अथवा पिता के नाम का आदर करे या नहीं? यदि करता है, तो नाम को अपेक्षा चित्र से तो विशेष याद आती है, ऐसी दशा में उसे उसका विशेष विनय आदि करना चाहिए।
साथ ही यह तर्क भी व्यर्थ है कि पुत्रवधू श्वसुर की तस्वीर को देखकर घूघट नहीं निकालती। जैसे तस्वीर देखकर शर्म नहीं करती वैसे ही नाम सुनकर भी मूंगट नहीं निकालती है तो फिर परमात्मा का नाम भी निरर्थक ही समझना चाहिए। इसके विपरीत वसुर को पहले नहीं देखा हो तो उसका चित्र देखकर बह को इस बात का ज्ञान होगा कि . 'ये मेरे श्वसुर है।' वैसे ही जिन्होंने भगवान को नहीं देखा है वे मूर्ति से पहचान जायेंगे कि ये भगवान है।
श्वसुर की पहचान होते ही बहु को बूंघट निकालने की शंका नहीं रहती, जिससे लाज करने-न-करने का कार्य सुगम हो जाता है। वह श्वसुर को पहचान कर तुरन्त बूंघट निकालती है तथा दूसरों को देखकर नहीं निकालती। वैसे ही मूर्ति द्वारा प्रभु की पहचान होने पर असेव्य के परित्याग का तथा सेव्य की सेवाभक्ति करने का कार्य सुगम बन जाता है और किसी भी प्रकार के भ्रमजाल में पड़ने का भय नहीं रहता। मूर्ति का यह भी एक महान् उपकार है।
प्रश्न 34 - भगवान की मूर्ति ही यदि भगवान है तो पापी चोर उनके आभूषण कैसे चुरा कर ले जाते है? लोग उनकी हजारों की रकम कैसे
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