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अक्षराकार-स्थापनास्वरूप आगम को नहीं मानने का साहस नहीं करते। यह बात भी स्थापना के अप्रतिहत प्रभाव को सूचित करती है।
स्थानकवासी वर्ग पैंतालीस आगमों में से स्वयं को इष्ट बत्तीस आगम और वे भी मूल मात्र ही मानता है। इन बत्तीस आगमों में भी स्थापनानिक्षेप की कितनी प्रबल व्यापकता रही हुई है, यह समझाने के लिए परोपकारी शास्त्रकार महर्षियों ने कम प्रयास नहीं किया है। श्री जिनेश्वरदेव का धर्म श्री जिनेश्वरदेव की आज्ञा के पालन में है, न कि कल्पित दया के कल्पित प्रकार के पालन में।
जहाँ दया, वहाँ जिनधर्म; ऐसी व्याख्या यदि निरपेक्ष है तो वह अधरी और असत्य है। जहाँ श्री जिन की आज्ञा वहाँ श्री जिन धर्म, यह सम्पूर्ण और सच्ची व्याख्या है। श्री वीतराग की आज्ञा आगमों में निबद्ध है और आगमों का अर्थ पंचांगीयुक्त शास्त्रों में गुंथा हुआ है। सूत्र, नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीकायें पंचांगी है। इनमें से एक भी अंग को नहीं मानने वाले वस्तुतः आगमों को ही अमान्य ठहराने वाले हैं। सूत्र के रचयिता श्री गणधर भगवन्त है तथा अर्थ बताने वाले श्री अरिहन्तदेव हैं। श्री गणधर भगवन्त के वचनों को मान्य रखना और श्री अरिहन्त भगवन्त के कथन की उपेक्षा करना बुद्धिमत्ता का लक्षण नहीं है।
सूत्र केवल सूचना रूप होते हैं। सूत्रों द्वारा दी गई सूचना जिसमें विस्तार से कही गई है, उन्हीं को नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि आदि माना गया है। उनके रचनाकार श्रुतकेवली, पूर्वधर तथा अन्य बहुश्रुत भवभीरु महर्षि है। वे असाधारण गीतार्थ, विद्वान् और पण्डित है। उनके वचनों को मानना बुद्धि की सार्थकता है।
प्रतिमा की वन्दनीयता के प्रमाण प्रतिमा-निषेधकों के माने हुए बत्तीस सूत्र अथवा आगमों के नाम निम्नानुसार हैं :
ग्यारह अंग, बारह उपांग, नंदी, अनुयोग, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ और दशाश्रुतस्कन्या
इन बत्तीस सूत्रों में भी स्थान-स्थान पर स्थापना-निक्षेप की सत्यता एवं वन्दनीयता बताई हुई है। उसके थोड़े से नमुने नीचे दिये जाते हैं .
1. श्री अनुयोगद्वार सूत्र में प्रत्येक पदार्थ के कम से कम 'नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव' ये चार निक्षेप करने की आज्ञा दी गई है।
2. श्री ठाणांग सूत्र में चार तथा दस सत्यों का निरूपण किया गया है तथा इसमें स्तापना को भी सत्यरूप में स्वीकार किया गया है।
3. श्री आवश्यक सूत्र में चारों निक्षेपों से श्री अरिहंत का ध्यान करने का आदेश है। जिनमें चतुर्विंशतिस्तव नाम और द्रव्य निक्षेप से तथा चैत्यस्तव द्वारा स्थापना निक्षेप से श्री
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