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भी निषेध है तथा द्रव्यनिक्षेप से स्त्री की पूर्वापर बाल्यावस्था तथा मृतावस्था आदि का स्पर्श भी निषिद्ध है। इस प्रकार हेय रूप वस्तु के चारों निक्षेप हेय रूप बनते हैं। केवल भावनिक्षेप को मानने वाले स्त्री के भावनिक्षेप को छोड़कर शेष तीनों निक्षेपों का आदर कदापि नहीं कर सकते।
इस प्रकार ज्ञेय वस्तु के भावनिक्षेप जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति में निमित्त बन सकते हैं उसी प्रकार चारों निक्षेप ज्ञान-प्राप्ति में निमित्त बन सकते हैं।
जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, मेरु पर्वत, हाथी, घोड़ा आदि ज्ञेय वस्तुएँ हैं। उनको जिस प्रकार साक्षात् देखने से बोध होता है, उसी प्रकार उनके नाम आकार आदि देखने-सुनने से भी उन वस्तुओं का बोध होता है। हेय तथा ज्ञेय की भाँति उपादेय वस्तुएँ भी चारों निक्षेपों से उपादेय बनती हैं। श्री तीर्थंकर देव जगत् में परम उपादेय होने से उनके चारों निक्षेप भी परम उपादेय बन जाते हैं।
समवसरण में बिराजमान साक्षात् श्री तीर्थंकरदेव भावनिक्षेप से पूजनीय हैं इसलिए 'महावीर' इत्यादि के नाम की भी लोग पूजा करते हैं। वैराग्य मुद्रा से युक्त ज्ञानारुढ़ उनकी प्रतिमा को भी लोग पूजते हैं तथा द्रव्यनिक्षेप से उनकी बाल्यावस्था की पूर्व अवस्था तथा निर्वाणदशा की उत्तरअवस्था को भी इन्द्र आदि देव भक्तिभाव से नमन करते हैं, पूजा करते हैं तथा उसका सत्कार करते हैं। इसके विपरीत अन्य देवों का भावनिक्षेप त्याज्य होने से उनके शेष तीनों निक्षेप भी सम्यगदष्टि आत्माओं के लिए त्याज्य बन जाते हैं और इसी कारण आनन्द आदि दस श्रावकों ने वीतराग को छोड़कर अन्य देवों को वन्दन नमस्कार नहीं करने की प्रतिज्ञा ली थी। उस समय वीतराग के सिवाय अन्य देव भावनिक्षेप से विद्यमान नहीं थे पर केवल उनकी मूर्तियाँ थी। अतः आनन्दादिक श्रावकों की नमन नहीं करने की प्रतिज्ञा उनकी मूर्तियों को लक्ष्य करके ही थी, यह अपने आप सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार वीतराग के सिवाय अन्य देवों की मूर्तियों को नमन करने का निषेध जिनमूर्ति को नमस्कार करने के विधान को अपने आप ही सिद्ध कर देता है।
यदि कोई रात्रिभोजन के त्याग के नियम को अंगीकार करता है, तो दिन में भोजन करने की उसकी बात स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार चारों निक्षेपों का परस्पर सम्बन्ध समझ लेने का है। उसमें विशेष बात यही है कि जिसके भावनिक्षेप शद्ध और वन्दनीय है उसके ही शेष निक्षेप वन्दनीय और पूजनीय हैं, दूसरों के नहीं।
. इस पर से कोई ऐसा प्रश्न करे कि - 'मरे हुए बैल को देखकर किसी को प्रतिबोध हो जाय तो क्या वह पूजनीय बन जाता है?' तो इसका उत्तर स्पष्ट है कि जिसका भावनिक्षेप वन्दन-पूजन योग्य है, उसी के शेष तीनों निक्षेपों की पूजा के लिए शास्त्रकार फरमाते हैं। साक्षात् बैल को किसी ने भी पूजा योग्य नहीं माना और इसीसे उसका नाम आदि भी पूजनीय नहीं होता है। राजा करकंडू आदि प्रत्येकबुद्ध महर्षि ने अतिवृद्ध बैल को देखकर प्रतिबोध प्राप्त किया था, पर भाव बैल वन्दनीय नहीं होने से उनके प्रतिबोध में कारणभूत बैल के नामादिक वन्दन करने योग्य नहीं 'गिने गए।
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