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ऋषभदेव स्वामी ने जिन जीवों को मोक्षगामी बताया, वे सभी पूजनीय हैं।
जिस प्रकार धनाढ्य साहूकार के हाथ से लिखी हुई, उसके हस्ताक्षर व मोहर वाली; अवधि विशेष की हुंडी हो तो उसकी अवधि पूर्ण होने के पूर्व भी रकम से काम निकाला जा सकता है, उसी प्रकार मोक्षगामी भव्य जीवों की ऋषभदेव स्वामी द्वारा दी हुई विश्वस्तता रूपी हुंडी को कौनसा विचारशील व्यक्ति अस्वीकार करेगा?
भगवान के वचन-विश्वास रूपी प्रबल कारण को लेकर बाकी के तेईस तीर्थंकर, प्रथम तीर्थंकर के समय में भी वन्दनीय थे। इस सम्बन्ध में श्री आवश्यक सूत्र में मूल पाठ भी है कि - _ 'चत्तारि-अट्ठ-दस-दोय, यंदिआ जिणवरा चउयीसं।'
अर्थात् - चारों दिशाओं में क्रम से चार, आठ, दस और दो इस प्रकार चौबीस तीर्थंकरों के बिम्ब श्री भरत महाराजा ने अष्टापद पर्वत पर स्थापित किये हैं। इस विषय में नियुक्तिकार श्रुतकेवली आचार्य भगवान श्रीमद् भद्रबाहुस्वामीजी महाराज ने समाधान किया है कि भरत राजा ने श्री ऋषभदेव स्वामी को भावी में होने वाले तेबीस तीर्थंकरों के नाम, लक्षण, वर्ण, शरीर का प्रमाण आदि पूछकर उसी के अनुसार, अष्टापद गिरि पर श्री जिनमन्दिर बनाकर सभी तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ ठीक वैसे ही आकार की स्थापित की थीं।
इससे सिद्ध होता है कि तेईस तीर्थंकरों के होने से पूर्व भी उनकी पूजा तथा मूर्ति तथा मन्दिर द्वारा उनकी भक्ति करने की प्रथा सनातन काल से चली आ रही है और इसे महान् ज्ञानी पुरुषों ने स्वीकार भी किया है।
प्रश्न 5 - 'सिद्धायतन' शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर - ‘सिद्धायतन' गुणनिष्पन्न नाम है। इसका अर्थ जिनमन्दिर होता है। 'सिद्ध' अर्थात् सिद्ध भगवान की प्रतिमा और 'आयतन' अर्थात् घर। अर्थात् जिनघर या जिनमन्दिर वैताढ्यपर्वत, चुलघुहिमवंत पर्वत, मेरु पर्वत, श्री मानुषोत्तर पर्वत, श्री नन्दीश्वर द्वीप, श्री रुचक द्वीप आदि पर्वत तथा द्वीपों पर अनेक शाश्वत जिनमूर्तियों वाले मन्दिरों के होने का प्रमाण श्री जीवाभिगम तथा श्री भगवती आदि सूत्रों में स्पष्ट बताया है और उन सूत्रों को तमाम जैन जानते हैं।
प्रश्न 6 - कई लोग श्री जिनप्रतिमा से जिनयिम्य नहीं लेकर, श्री वीतरागदेव के नमूने के समान साधु को ग्रहण करते हैं, क्या यह उचित
है?
उत्तर - उनकी यह मान्यता झूठी एवं कल्पित है। सूत्रों में स्थान-स्थान पर श्री जिनप्रतिमा, जिनवर तुल्य कही गई है। श्री जीवाभिगम आदि सूत्रों में जहाँ-जहाँ शाश्वती प्रातमा का अधिकार है, वहाँ-वहाँ 'सिद्धायतन' अर्थात् 'सिद्ध भगवान का मन्दिर' कहा है।