Book Title: Prashna Vyakaran Sutra Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyanpith View full book textPage 9
________________ श्रद्धय राष्ट्रसन्त, उपाध्याय, कविरत्न श्री अमरमुनि जी महाराज की सेवा में मेरे गुरुदेव ने प्रकाशन आदि के सबन्ध में अपनी मंगल भावना प्रगट की, तो अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने अपनी स्वीकृति दी। गुरुदेव के साथ उपाध्याय श्री जी का सहज स्नेह है, वह सर्वविदित है। प्रारम्भ से ही गुरुदेव का उपाध्याय श्री जी के प्रति सुमधुर, सहज श्रद्धाभाव रहा है। इस स्थिति में गुरुदेव को इन्कार कैसे मिल सकता था । अस्तु सन्मति ज्ञानपीठ से प्रकाशन शुरू हुआ । इस महनीयकृति को सर्वाङ्गसुन्दर एवं सर्वजनोपयोगी रूप देने में उपाध्याय श्री जी का जो महत्त्वपूर्ण योगदान है, वह हम सभी को सदा स्मरणीय रहेगा । उपाध्याय श्री जी अस्वस्थ रहे हैं, अतः पं० मुनि श्री नेमिचन्द्र जी का जो बहुमूल्य आदर्श सहयोग मिला है, वह भी सादर समुल्लेखनीय है । श्रद्धय मुनिद्वय का यदि समय पर सहयोग प्राप्त न होता, तो जो कुछ विशिष्टता पाठक देख रहे हैं, वह नहीं प्राप्त हो सकती थी। मैं एतदर्थ मुनिद्वय के प्रति शिरसा मनसा प्रणत हूं, साथ ही कृतज्ञ भी। आशा रखता हूँ, भविष्य में भी मेरी संभावित प्रवृत्तियों में आप श्री का यथावसर उचित सहयोग एवं सहकार मुझे मिलता रहेगा। __ मैं सन्मति ज्ञानपीठ के संचालकों और व्यवस्थापकों को धन्यवाद दिए बिना कैसे रह सकता हूँ, जिन्होंने इस विशाल शास्त्र को इतना शीघ्र, साथ ही इतने उत्तम एवं मनोहर रूप में प्रकाशित कर जिज्ञासु पाठकों तक पहुंचाने का युगानुरूप प्रयत्न. किया है। साथ ही अन्य सहयोगियों की सेवाएँ भी मेरे स्मृतिकक्ष में चिरस्मरणीय रहेंगी। प्रस्तुत संस्करण का मूल्यांकन तो प्रबुद्ध पाठक ही करेंगे। उन्हें यह सब अधिकांश में पसन्द ही आएगा। संभव है, कुछ नापन्द जैसा भी हो, तो वह सब मेरा है, मुझे सहर्ष लौटा दें। मैं क्या हूँ, क्या जानता हूं। मैं तो इस पथ का एक बालयात्री हूँ। आज का ही नहीं, युगानुयुग का एक सत्य है. 'सर्वः सर्वं न जानाति'मैं इसे सादर स्वीकार करता हूँ। —अमर मुनिPage Navigation
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