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इसकी स्थिति स्थूलरूप से दक्षिण-बिहार के प्रदेश में थी। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख 'अथर्ववेद' (5,22,14) में है-'गंधारिम्भ्यो मूजवद्भ्योगेभ्यो मगधेभ्य: प्रेष्यन् जनमिव शेवधिं तक्मानं परिदद्मसि' । इससे सूचित होता है कि प्राय: उत्तर-वैदिककाल तक मगध आर्य-सभ्यता के प्रभाव-क्षेत्र के बाहर था।' 'वाजसेनीय संहिता' (30,5) में मागधों या मगध के चारणों का उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण' (बाल. 32,8-9) में मगध के 'गिरिव्रज' का नाम 'वसुमती' कहा गया है और 'सुमागधी' नदी को इस नगर के निकट बहती हुई बताया गया है—'एषा वसुमती नाम वसोस्तस्य महात्मनः, एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते समंतत:, सुमागधीनदी रम्या मागधान्विश्रुताऽऽययौ, पंचानां शैलमुख्यानां मध्ये मालेव शोभते' । महाभारत के समय में मगध में जरासंध का राज्य था, जिसकी राजधानी 'गिरिव्रज' में थी। जरासंध की मृत्यु के समय श्रीकृष्ण अर्जुन और भीम के साथ मगध-देश में स्थित इसी नगर में आए थे-गोरथं गिरिमासाद्य ददृशुर्मागधं पुरम्' - (महाभारत, सभापर्व 20,30)। जरासंध की मृत्यु के पश्चात् भीम ने जब पूर्व दिशा की दिग्विजय की, तो उन्होंने जरासंध के पुत्र सहदेव को, अपने संरक्षण में ले लिया और उससे कर ग्रहण किया तत: सुह्मान् प्रसुह्मांश्च सपक्षानतिवीर्यवान् विजित्य युधिकौंतेयो मागधानभ्यधाद् बली' । 'जारासंधि सान्त्वयित्वा करे च विनिवेश्य ह' (सभापर्व, 30, 16-17)। गौतम बुद्ध के समय में मगध में बिंबिसार और तत्पश्चात् उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था। इस समय 'मगध' की 'कोसल' जनपद से बड़ी अनबन थी। यद्यपि कोसल-नरेश प्रसेनजित् की कन्या का विवाह बिंबिसार से हुआ था। इस विवाह के फलस्वरूप काशी का जनपद मगधराज को दहेज के रूप में मिला था। यह मगध के उत्कर्ष का समय था और परवर्ती शतियों में इस जनपद की शक्ति बराबर बढ़ती रही। चौथी शती ई.पू. में मगध के शासक नव नंद थे। इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के राज्यकाल में मगध के प्रभावशाली राज्य की शक्ति अपने उच्चतम-गौरव के शिखर पर पहुँची हुई थी और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र भारत भर की राजनीतिक- सत्ता का केन्द्र-बिन्दु थी। मगध का महत्त्व इसके पश्चात् भी कई शतियों तक बना रहा और गुप्तकाल के प्रारंभ में काफी समय तक गुप्त-साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ही में रही। जान पड़ता है कि कालिदास के समय (संभवत: 5वीं शती ई.) में भी मगध की प्रतिष्ठा पूर्ववत् थी; क्योंकि रघुवंश' (6,21) में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में मगधनरेश परंतप का भारत के सब राजाओं में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। इसी प्रसंग में मगध-नरेश की राजधानी को कालिदास ने 'पुष्पपुर' में बताया है-'प्रासादवातायन-संश्रितानां नेत्रोत्सवं पुष्पपुरांगनानाम्' 6,24 । गुप्त-साम्राज्य की अवनति के साथ-साथ ही 'मगध' की प्रतिष्ठा भी कम हो चली और छठी-सातवीं शतियों के पश्चात् 'मगध' भारत का एक छोटा-सा प्रांत मात्र रह गया। मध्यकाल में यह 'बिहार' नामक प्रांत में विलीन हो गया और मगध का पूर्व-गौरव इतिहास का विषय बन गया। जैन-साहित्य में अनेक-स्थलों पर मगध तथा उसकी राजधानी राजगृह' (प्राकृत-रायगिह) का उल्लेख है।"
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only
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