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प्राकृत वाक्यरचना बोध भवंति । माहुलिंगस्स रुक्खा सया हरिअपुण्णा (हरे भरे) चिट्ठति । अप्पट्ठिणो साओ खट्टो महुरो य भवइ । आयरियतुलसीहिं पोप्फलस्स साओ न चक्खिओ। मज्झ खुमाणी रोअइ। अक्खोडबीयं केइ लोआ कहं न खाअंति । दक्खिणपएसवासिणो अबीया बहु भुंजंति । रोगे गोत्थणी बहु लाभअरा भवइ । णिकायगस्स वण्णो हरियचणव्व हरिओ भवइ । काजू अगा साअम्मि महुरा एव भवंति । काउंबरीए बहुबीयाणि भवंति । सिंघाडया तलायम्मि भवंति । धणिपरिवारे विवाहम्मि वायायाण मिट्ठान्नं भवइ । बालत्तम्मि बोरं मए बहु भुत्तं । नारिएलस्स नीरं ओसहरूवेण पिज्जइ। णिबोलिया फग्गुणमासे चित्तमासे य हवइ । धणंजयस्स आरुयं रोयइ । मद्दास (मद्रास) णयरस्स मोसंबी पीअवण्णा महुरा य भवइ । विहारपएसवासिणो कोइलक्खि बहु खाअंति । धातु प्रयोग
___ वट्टमाणकाले साहुणो पयजत्तं विअक्कंति । तुम अत्थ किं विअक्खसि ? भगवंतस्स महावीरस्म णिव्वाणदिवसे साहुणीओ गोइयं गाति । गिहत्थस्स घरे सलिलं गिण्हंता नीरं गालंति । सो रूवे गिज्झइ। मरुम्मि बालो धलिम्मि खेलंतो गुंठइ । सो आसं गुडेइ । तुम इंदियाई गुडेसि । सो वागरणं गुणइ । सो वसंतस्स हत्थत्तो एग गासं गसइ। प्राकृत में अनुवाद करो
__ पपीता अतिमात्रा में खाने से मूत्र का अवरोध होता है। रात भर भीगी इमली और गुड का पानी पीने से रक्त शुद्धि होती है। खज्जूर पर मक्खियां क्यों बैठती हैं ? दौलताबाद के अंगूर विदेश भेजे जाते हैं । किसमिस अंगूर का सूखा फल है। खांसी और पेशाब की जलन में मुनक्का का उपयोग करते हैं। अखरोट गुण में बादाम के सदृश होता है। काजू विदेशों में बहुत जाता है। पिस्ता सब लोग नहीं खा सकते । अंजीर से पेट की शुद्धि होती है, इसमें अनेक बीज होते हैं। बादाम खाने से बुद्धि बढती है। बिजौरा के छिलके (छोओ) में सुगंधित तेल होता है जिसे सिट्रोन तेल कहते हैं। फालसा हुलासी बहन को बहुत प्रिय है। तुम दिन भर सुपारी क्यों खाते हो ? हम सब खमानी खाना चाहते हैं । सिंघाडा बाजार में अभी नहीं है। बेर के तीन प्रकार हैं । आलुबुखारा हमारे गांव में नहीं मिलता है। किस प्रसन्नता में तुम नारियल बांट रहे हो ? अच्छा बादाम बहुत महंगा है। नींब का फल हर कोई नहीं खा सकता । मैं मौसंबी का रस दोपहर में प्रतिदिन पीता हूं। मेरे भाई ने मेरे लिए तालमखाना भेजे हैं । धातु का प्रयोग करो
बडा काम करने से पहले बडों से विमर्श करना चाहिए। भगवान सबको देखता है । पुरुष ३२ ग्रास खाता है । उसने मधुर गीत गाया । अहिंसक
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