Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 583
________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध (११) वापस लौट गया-अवक्कंत (वि) शास्त्रज्ञ-बहुस्सुयो (१० ) शिकारी-लुद्धगो (३६) वार्ता-वत्ता (१२, ७६) शीतोष्ण-सीउण्हं (६३) वास्तव-जहत्थं (६०) शोभा-सोहा (५८) विघटन-विहडणं (६६) श्मसान-मसाणं (४०) । विद्वान्-विउस (वि) (१०६) श्रवण-सवणं (३६) विरह- अवहायो (९८) श्वास का रोग-सासो (६४) विवाह-विआहो (७४) संगति-संगो (३६) विशाल (उदार)-उराल (वि) संतुष्ट-संतुट्ठो (१०५) (८०) संभव-संहवं (१३) विशाल-विसाल (वि) (१०१) संस्कार-सक्कारो (८२) विश्राम–विस्साम (१०७) सखी सहेली—अत्थयारिआ (दे०) वृक्ष- दुमो (१००) वृत्ति-वित्ती (स्त्री) (१०२) सज्जन-सुअणो (१०३) वेतन लेकर काम करने वाला समर्थन-समत्थणं (८१) ___ वेयणियो (६०) सफाई-पमज्जणं (१०२) वेदना-वेयणा (७८) सत्तू–सत्तू (२४) वैक्रिय शरीर से संबंधित विउव्विल समर्पण-समप्पणं (१२) (वि) (७८) समस्या-समस्सा (६४) ध्यक्ति-वत्ति (५१) सहयोग-साउज, साहज्जं, साहिज्जं व्यक्ति-विअत्ति (८५) (४०) व्यक्तित्व-वत्तित्तणं (१०३) सहायता-- साहज्ज (६) व्यवहार-ववहारो (२४) साक्षात्-सक्खं (७८) व्याकरण-वागरणं (४६) सींग~-विसाणं (५८) व्याकुल-अक्खित्तं (१०७) सुरक्षित-सुरक्खिओ (१०२) व्यापार-वावारं (७६) सेंध-खत्तं (दे०) (१०५) व्यायाम-वायामो (६८) सेवा-णिवेसणा (६३) शत्रु-सत्तू (६) सेवा-परिचारणा (३६) शांति-संति (स्त्री) (७६) सोने का-सुवणिम (वि) (१०५) शाक-सागो (४३) स्तूप--थूभो (१०४) शाखा--डाली (५६) स्मृति-सई (स्त्री) (४४) शासक-सासओ (३८) स्वच्छ-अच्छं (४४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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