Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 611
________________ ५६४ ( वै. प्र. ३ | १ | १२३ ) नमसा-मनसा ऋ. पू. ४८.६ कर्तुः तर्कः ( निरुक्त पृ. १०१ - १३ ) (३०) हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय में समानता वैदिक कर्तुम्—कर्तवे ( वैदिक प्रक्रिया ३ | ४१६ ) वैदिक प्रक्रिया सूत्र में 'से', 'सेन' और अ से प्रत्ययों का विधान तुम् के स्थान में किया गया है । इस नियम से इ धातु का 'एसे' (एतुम्) रूप होगा (३१) क - क्रियापद के प्रत्ययों में समानता वैदिक प्रथम पुरुष, बहुवचन दुह, + रे दुह्र ( वैदिक प्रक्रिया ७१ १८ ) ख -- आज्ञार्थक सूचक इ प्रत्यय वैदिक बोध् + इ—बोधि प्राकृत वाक्यरचना बोध अचलपुरं - अलचपुरं ( २।११८ ) वाराणसी-वाणारसी Jain Education International (२।११६) महाराष्ट्र – मरहट्ठ (२।११९ ) प्राकृत कत्तवे, कातवे, कस्तिए गणे, दक्खिताये नेतवे, निधातवे प्राकृत प्रथम पुरुष के बहुवचन में रे और इरे प्रत्यय का भी व्यवहार होता है । गच्छ— गच्छरे, गच्छिरे (हे. प्रा. व्या. ३।१४२ ) प्राकृत बोध् + इ -- बोधि, बोहि सुमर् + इ = सुमरि ( हेम. प्रा. व्या. ४१३७ ) (३२) संज्ञा शब्दों के रूपों में प्रत्ययों की समानता वैदिक देवेभिः (वं. प्र. ७|१|१० ) पतिना ( वै. प्र. १/४ | ) प्राकृत देवेभि - देवे हि पतिना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622