Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 609
________________ ५६२ वै. प्र. ६ । ४ । १६२ वृन्द-वृन्द (निरुक्त पृ. ४३२ अं० १२८ ) तु ततुरि: ग - जगुरि: वै. प्र. ७।१।१०३ (२२) द को ड वैदिक दुर्दभ—दूडभ (वा. सं. ३,३६) पुरोदाश - पुरोडाश (वै. प्र. ३२७१) (२३) अव को ओ तथा अय को ए वैदिक श्रवणा --- श्रोणा ते. ब्रा० १, ५ - १,४; ५.२,६ अन्तरयति--अन्तरेति शत. ब्रा. १,२-३, १८; ४,२०; ३.१.१६ (२४) संयुक्त के पूर्व का हस्व वैदिक रोदसीप्रा-रोदसिप्रा ( ऋग्वेद संस्कृत १०६८।१० अमात्र - अमत्र ऋग्वेद संस्कृत २.३६.४ (२५) क्ष को छ वैदिक अक्ष--अच्छ ( अथ. सं. ३ | ४ | ३ ) Jain Education International ऋणं रिणं वृन्द वुन्द वृतान्त -- वुत्तन्त वृद्ध वुड्ढ ऋषभ-उसभ प्राकृत वाक्यरचना बोध (१४१४१ ) (१११३१) ऋतु—उतु ऋजु – उज्जु प्राकृत दण्ड —— डंड दंभ डंभ दर — डर दंसण - डंसण दोला -- डोला प्राकृत अवयरइ — ओअरइ अवयास - ओआस अवसरति - ओसरइ कयल — केल अयस्कार— एक्कार प्राकृत आम्रं - अम्बं मुनीन्द्र मुणिन्द आस्य -- अस्स तीर्थ — तित्थ (ST. 8158) प्राकृत अक्षि - अच्छि अक्ष-अच्छ For Private & Personal Use Only 17 "} " "1 (१।२१७) "1 37 77 (१।१७३) " " (१।१६७) (१११६६) ( ११३३ ) www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622