Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 607
________________ ૨૦ ( हे० प्रा० व्या० २।२४ ) द्योतते ज्योतते निरुक्त पृ. १७०, १६ अवद्योतयति---अवज्योतयति ( शत. ब्रा. १.२.३.१६ ) (१४) ह की घ तथा भ वैदिक आहृणि— आघृणि निरुक्त पृ. ३८२,३६ विदेह विदेघ ( शत. ब्रा. १।३।३ ) मेह - मेघ ( निरुक्त पृ. १०१,१ ) गृहीत -गृभीत गृहाण - गृभाण्य जहार -- जभार (१५) ड को ल तथा ड को ळ वैदिक ईडे--- ईळे अहेडमान : --- अहेळमान: दृढदृळह सोढा-साळहा ( वै. प्र० ६ | ३ | ११३ ) (१६) अनादिस्थ य तथा व का लोप वैदिक प्रयुग - पउग ( वा०सं० १५ - १ ) सिव् धातु का - - सीमहि ( ऋग्वेद पृ० १३५, ३) पृथुजव: - पृथुज्ञयः निरुक्त पृ. ३८३, ४० (१७) अभूतपूर्व र का आगम वैदिक अधिगु-अधिगु Jain Education International प्राकृत वाक्यरचना बोध प्राकृत सीह - - सिंघ ( प्राकृत में ये दोनों दाह--- दाध रूप प्रचलित हैं ( प्रा० १।२६४ ) संहार — संघार विह्वल - बिब्भल ( प्रा० २।५८ ) जिह्वा - जिब्भा ( प्रा. २।५७ ) प्राकृत ईडे, ईले, ईळ अहेळमानो दळह सोळहा ( प्रा. ११२०२, ३।३०८ ) प्राकृत प्रयुग - - पउग लावण्य - लायण्ण । इस प्रयोग में व कालोप, शेष अ को य श्रुति हुई है। ( प्रा० १११७७) प्राकृत अपभ्रंश प्राकृत में व्यास का व्रास For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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