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( हे० प्रा० व्या० २।२४ )
द्योतते ज्योतते निरुक्त पृ. १७०, १६ अवद्योतयति---अवज्योतयति ( शत. ब्रा. १.२.३.१६ )
(१४) ह की घ तथा भ
वैदिक
आहृणि— आघृणि निरुक्त पृ. ३८२,३६ विदेह विदेघ
( शत. ब्रा. १।३।३ ) मेह - मेघ
( निरुक्त पृ. १०१,१ ) गृहीत -गृभीत
गृहाण - गृभाण्य
जहार -- जभार
(१५) ड को ल तथा ड को ळ
वैदिक
ईडे--- ईळे
अहेडमान : --- अहेळमान:
दृढदृळह
सोढा-साळहा
( वै. प्र० ६ | ३ | ११३ )
(१६) अनादिस्थ य तथा व का लोप
वैदिक
प्रयुग - पउग
( वा०सं० १५ - १ )
सिव् धातु का - - सीमहि ( ऋग्वेद पृ० १३५, ३)
पृथुजव: - पृथुज्ञयः निरुक्त पृ. ३८३, ४०
(१७) अभूतपूर्व र का आगम
वैदिक अधिगु-अधिगु
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प्राकृत वाक्यरचना बोध
प्राकृत
सीह - - सिंघ ( प्राकृत में ये दोनों दाह--- दाध रूप प्रचलित हैं ( प्रा० १।२६४ )
संहार — संघार
विह्वल - बिब्भल ( प्रा० २।५८ ) जिह्वा - जिब्भा
( प्रा. २।५७ )
प्राकृत
ईडे, ईले, ईळ अहेळमानो
दळह
सोळहा
( प्रा. ११२०२, ३।३०८ )
प्राकृत
प्रयुग - - पउग
लावण्य - लायण्ण । इस प्रयोग में व कालोप, शेष अ को य श्रुति हुई है।
( प्रा० १११७७)
प्राकृत
अपभ्रंश प्राकृत में व्यास का व्रास
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