Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 604
________________ परिशिष्ट ७ वैदिक संस्कृत और प्राकृत भाषा वैदिक संस्कृत और प्राकृत भाषा में समानता अधिक है । कुछेक समानता यहां प्रस्तुत है । (१) वैदिक संस्कृत की धातुओं में किसी प्रकार का गणभेद नहीं है । प्राकृत भाषा में भी धातुओं में गणभेद नहीं है । पाणिनीय धातु वैदिक धातु हनति शयते भेदति मरते हन्ति शेते भिनत्ति म्रियते मरए ( वैदिक प्रक्रिया सू० २/४/७३, ३/४/८५, २।४।७६, ३/४ । ११७, ऋग्वेद पृ० ४७४ महाराष्ट्र संशोधन मंडल ) 1 (२) वैदिक संस्कृत में आत्मनेपद तथा परस्मैपद का भेद नहीं है । प्राकृत भाषा में भी आत्मनेपद और परस्मैपद का भेद नहीं है । वैदिक संस्कृत इच्छति, इच्छते युध्यति, युध्यते ( वैदिक प्रक्रिया ३|१| ८५ ) पाणिनीय धातु इच्छति युध्यते प्राकृत भाषा हनति, हणति सयते, सयए भेदति, भेदइ मरते, (३) वैदिक संस्कृत में प्रथम पुरुष के एकवचन के ए प्रत्यय के रूप में समानता है । पाणिनी ए प्रत्यय शेते इष्टे वैदिक शेये ईशे ( वैदिक प्रक्रिया सू० ७।१।१ ऋग्वेद पृ. ४६८ ) (४) वर्तमान और भूतकाल आदि कालों में वैदिक संस्कृत में में कोई नियमता नहीं है । वैदिक क्रियापद में वर्तमान परोक्ष भी होता है । म्रियते के स्थान पर ममार ( वैदिक प्रक्रिया ३ | ४ | ६ ) प्राकृत भाषा में परोक्ष के स्थान पर वर्तमान का प्रयोग भी होता है । Jain Education International प्राकृत भाषा इच्छति, इच्छ जुज्झति, जुज्झते For Private & Personal Use Only प्राकृत सए ईसे, ईस तथा प्राकृत के स्थान पर प्रयोग हुआ है । www.jainelibrary.org

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