Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
परिशिष्ट ६
वरतना-वट्ट (८८)
विराम लेना-विरम (११) वरसना-वरिस (३३)
विरोध करना-बाह (६२) वर्गकरना-वग्ग (८८)
विलाप करना-झंख, वडवड, विलव वर्जन करना-वज्ज (३१) वर्णन करना-वण्ण (८८) विलास करना--लल (८४) वसना--वस (८६)
विलेखन करना-विलिह (६१) वहन करना-णिविस्स (१६) विलोडन करना-मह (८१) लोल
पडिवह (७७) वाह (६०) (८७) देखो मंथन करना वाद विवाद करना-पवय (३०) विवरण करना-वक्खा (८७) वापस आना-पडिइ (७३) पलोट्ट, विवाह करना-विवह (१२) पच्चागच्छ (१०६)
विशेष जलना-पजल (७१) वापस देना-पच्चप्पिण (७०) विश्राम करना-णिव्वा, वीसम वम्फ, वल (१०६)
(१०५) वास करना-पज्जोसव (७२) वस विश्वास करना-पत्ति (६०)
(८६) आवास (६८) विसंवाद करना-विअट्ट, विलोट्ट, फंस, विकसना-पप्फुल (६०) फुट
विसंवय (१०४)
विस्तार करना-तण (५३) विकास करना--कोआस, वोसट्ट,
विस्तार से कहना-पबंध (६०) विअस (१०७)
विस्मरण करना-वीसर (२८) विक्रय करना-विक्क (२७) देखो
विहार करना-विहर (२५) बेचना
वृद्ध होना-पक्खुम्भ (६८) विचरना-विचर (२६)
वेष्टन (वेष्टित) करना-वेढ (४०) विचलित करना-धरिस (५२)
पडिबंध (७६) विचार करना-पडिसंविक्ख (७८)
व्यक्त करना-वंज (८७) विदारना-दार (५७)
व्यवहार करना-पडिसंखा (७६) विद्यमान होना-विज्ज (५२) विनती करना-विण्णव (२३)
व्याकुल होना-विर, गड, गुप्प विनाश करना-लुंप (८६)
(१०५)
व्याख्यान करना-वक्खाण (२८) विपरीत होना--पडिकूल (२६)
व्यापार करना–ववहर (८६) विमर्श करना--विअक्क (४९)
व्याप्त होना----ओअग्ग, वाव (१०५) वियोग से दुःखित होना-जूर (३०) विरत होना-पडिसम (७८) . विराजमान होना-विराम (२६) शब्द करना-कण (४०) कवं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/dd5ac033f7f9ea6e805286c292cbb6a51dcacd588d17d8978bc8b8954b244a10.jpg)
Page Navigation
1 ... 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622